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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१९५

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रामलाल , बाहर दस्तक देते देत थक गया था , भन्नाकर बोला तुझे साप सूघ गया था या क्या हो गया था ? एक घण्टे से बाहर खडा दरवाजा खटखटा रहा है । कहा मर गई थी ?" फिर आवाज दबाकर उसन होल से पूछा, म दर कोई है तो नही ?

जव सुगधी ने कहा नहीं तो रामलाल की आवाज फिर ऊची हो गई, तू दरवाजा क्यो नही खोलती ? भई हद हो गई । क्या नीद पाइ है । ऐसे एक एक छोकरी को उठाने मे दो दा घण्टे सिर खपाना पडे तो मैं अपना धधा कर चुका । अब तू मेरा मुह क्या देखती है । झटपट यह धोती उतारकर वह फूलो वाली साडी पहन पाउदर वाउडर लगा और चल मेरे साथ बाहर मोटर मे एक सेठ बैठे तेरा इ तजार कर रहे है चल चल , एक्दम जल्दी कर । ___ सुगधी पारामकुर्सी पर बैठ गई और रामलाल पाईन के सामने अपने बालो मे घी करने लगा ।

सुग धी न तिपाइ की तरफ हाथ बढाया और वाम की शीशी उठाकर उसका ढकना खोलते हुए कहा, रामलाल , आज मेरा जी अच्छा नहीं । ____ रामलाल न कधी दीवारगीर पर रख दी और मुडकर कहा, तो पहले ही कह दिया होता ।

सुगधी ने माथे और कनपटियो पर बाम मलते हुए रामलाल का भ्रम दूर कर दिया, वह बात नहीं रामलाल ऐसे ही मेरा जी अच्छा नही बहुत पी गई ।

रामलाल के मुह में पानी भर आया , थोडी बची हो तो ला, जरा हम भी मुह का मजा ठीक कर लें ।

सुगधी ने वाम की श गी तिपाई पर रख दी और कहा, बचाइ होनी तो यह मुमा सिर मे दद ही क्यो होता । स रामलाल , वह जो बाहर मोटर म बठा है उस अदर ही ल ा ।

रामलाल न जवाव दिया नही भई वे प्रदर नहीं पा सक्त । जेण्टलमन प्रादमी हैं । वे तो मोटर को गली के बाहर खडी करत हुए भी घबरात थे तू कपडे- वपडे पहन ले और जरा गली के नुक्मत तब चल

सब ठीक हो जाएगा । 192 / टोबा टेकसिंह