पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/१९७

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ही दिन हुए हैं इस घ घा गुरु दिए। फिर सुगधी पी अोर मुडार कहा, 'सुगधी, इधर पा, मेठजी बुलात हैं। । मुगधी माती या एक रिनारा अपनी उगली पर लपटती हुई आग बढी और मोटर के पास खड़ी हो गई। मठ मारव ने टाच स उसके चेहरे 4 पास रोगनी की। एक क्षण के लिए उस रोशनी ने सुगधी की नुमार- भरी पाखो म चकाचौंध पैदा की। बटन दबाने की मावाज पैदा हुई और रोशनी वुझ गई। साथ ही सठ के मुह म एक 'ऊह' निकली। फिर एक- दम मोटरसाइजन फरपडाया और वार यह जा, वह जा सुगधी कुछ मोच भी 7 पाई कि मोटर चल दी। उसकी भाषा म अभी तक टाच की तेज रोशनी घुसी हुई थी। वह मेठ का चेहरा भी तो ठोर तरह 7 देख सकी थी। यह प्रासिर हुआ क्या था ? इस 'मह' का क्या मतलब था, जो अभी तक उसके कानो मे भाभना रही थी ? क्या? क्या? रामलाल दलाल की आवाज सुनाई दी, 'पस द नही क्यिा तुझे । अच्छा भई में चलता है। नो घण्टे मुफ्त म ही वग्वाद दिए।' यह सुनकर सुगधी की टागाम, उसको बाहा मे, उसके हाथा म एक जबरदस्त हरबत का इरादा पैदा हुआ।वहा थी वह मोटर कहा था वह सठ तो 'ऊ है' का मतलब यह था कि उसन मुझे पस द नही किया उसकी गाली उसके पेट के अंदर से उठी और जवान की नोक पर पाकर एक गई । वह प्रासिर गाली किमे दती । मोटर तो जा चुकी थी । उसकी दुम को लाल वत्ती उसके मामने, बाजार के अधिधारे मे डूब रही थी। और सुगधी को ऐसा महसूस हो रहा था कि यह लाल लाल अगारा उह' है, जो उसके सीन में वर्म की नरह उतरा चला जा रहा है । उमक जी में आया कि जोर से पुकारे, 'यो सेठ प्रो सेठ जरा मोटर रोक्ना अपनी बस, एक मिनट के लिए।' पर वह सेठ, थू है उसकी जात पर, बहुत दूर निकल चुका था। वह मुनसान बाजार में खडो थी । फूला वाली साडी, जिसे वह वास• खास मौको पर पहना करती थी, रात के पिछले पहर को हल्की फुल्की 194 / टोबा टेप सिंह