पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२०४

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दापित हो गई। माधो मूछा मे हसा और दरवाजा बंद करके सुगधी से पहा लगा, 'माज तून मरा कहना मान ही लिया-सुबह की सैर तदुरस्ती के लिए बडी अच्छी होती है। हर रोज इसी तरह सुबह उठकर घूमन जाया फरेगी तो सेगे नारी सुम्ती दूर हो जाएगी और तेरी कमर का वह दद भी गायब हो जाएगा, जिसकी शिकायत तू पाए दिन किया करती है। विक्टोरिया गाइन तक तो हा पाई होगी तू? क्यो ?' सुगधी ने कोई जवाब नहीं दिया और न माधो ने जवाब चाहा । दर- असल जव माधो वात क्यिा करता था तो उसका मतलब यह नहीं होता था कि मुगधी उसम जरूर हिस्सा ले और सुगधी जब कोई बात किया करनी थी तो यह जारी नहीं होता था कि माधो उसमे भाग ले-चूकि पोई बात करनी होती थी, इसलिए वे कुछ कह दिया परत थे। माधो वेंत की कुर्मी पर वठ गया, जिसकी पीठ पर उसचे तेल चुपडे मिर न मल का बहुत बडा धवा बना रखा था, और टाग पर टाग रख- कर अपनी मूछा पर उगलिया फेरने लगा। मुगधी पलग पर बैठ गई और माधो से पहन लगी, 'मैं प्राज तेरी वाट ही देन रही थी।' माधो बडा सिटपिटाया, 'मरी बाट । पर तुझे कैसे मालूम हुआ कि मैं प्राज मान वाला हूँ सुगधी के भिच हुए हाट खुले, उनपर एक पीली-सी मुस्कराहट नमू- दार हुई, 'मैन रात तुझे सपन म देखा था-उठी तो कोई भी न था। सो मन ने कहा चलो, कही बाहर घूम पाए और माधोपुग होकर बोला, 'और मया गया भई, बडे लोगा की बातें बड़ी पक्की होती हैं । क्सिीन ठीक कहा है दिल यो दिल से राह है तूने यह मपना पव दखा था मुगधी ने उत्तर दिया, 'चार बजे करीव ।' माधो कुर्सी पर मे उठकर मुगधी के पास बैठ गया, 'और मैंने तुझे ठीक दो बजे सपने म देखा जैसे तू फूला वाली साडी अरे, बिलकुल यही साडी पहन मेरे पास खडी है। तेरे हाथो में क्या था तेरे हाथा " 2 , हतक /201