पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२०५

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मे? हा, तेरे हाया मे रुपयो से भरी हुई थैली थी । तून वह थैली मेरी झोली मे रख दी और पहा, माधो, तू चिता क्यो करता है? ले यह थैली अरे, तेरे-मेरे रुपये क्या दो हैं? सुगधी तरी जान की कमम, फौरन उठा और दिक्ट कगर इधर का रस क्यिा क्या बताऊ, वडी परेशानी है । बैठे बैठाए एक केस हो गया है। अब वीस-तीस रपये हा तो इस्पेक्टर की मुटठी गम परवे छुटकारा मिले थक तो नहीं गई तू ? लेट जा, मैं तरे पाव दवा दू । घूमन की पादत न हो तो थकन हो ही जाया घरती है। इधर मेरी तरफ पैर करके लेट जा।' सुगधी लेट गई। दोनो वाहा का तकिया बनापर, वह उनपर सिर रखकर लेट गईऔर उस लहजे मे, जो उसका अपना नही था, माधो सकहन लगी, 'माधो, यह क्सि मुए ने तुझपर केस किया है 'जेल वेल का डर हो तो मुझमे कह दे । वीस तीस क्या, सौ पचास भी ऐसे मौका पर पुलिस के हाथ में थमा दिए जाए तो फायदा अपना ही है-जान बची लाखा पाए बस-बस, अब जाने दे, थकन कुछ ज्यादा नही है-मुट्ठी चापी छोड और मुझे सारी बात सुना । केम का नाम सुनते ही मेरा दिल धक धक करने लगा है वापस कब जाएगा तू' माधो को सुगधी के मुह मे शराव की वास आई । उसने यह मौका अच्छा समझा और झट से कहा, 'दोपहर की गाड़ी से वापस जाना पड़ेगा। अगर शाम तक सव इस्पेक्टर को सौ पचास न थमाए तो ज्यादा देने की जरूरत नही, मैं समझता हू, पचास में काम चल जाएगा यह कहकर सुगधी बडे पाराम से उठी और उन चार तस्वीरो के पास धीरे धीरे गई, जो दीवार पर लटक रही थी । वायी तरफ से तीसरे प्रेम में माधो की तस्वीर थी । वडे-बडे फूलो वाले पर्दे वे आगे, कुर्सी पर वह दोनो राना पर अपने हाथ रखे बैठा था। एक हाथ मे गुलाब का फूल था। पास ही तिपाई पर दो मोटी मोटी किताबें धरी थी। तस्वीर खिंचवाते समय, तस्वीर खिचवान का खयाल माधो पर इतना छा गया था कि उसकी हर चीज तस्वीर से बाहर निक्ल निक्लकर-जैसे पुकार रही थी---'हमारा फोटो उतरेगा' 'हमारा फोटो उतरेगा। कमरे की तरफ माधो आखें फाड फाडकर देख रहा था और ऐसा 'पचास . 202/टोबा टेकसिंह