पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२२५

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मैंने उससे पूछा, 'तुम्हारा क्या खयाल है ?' मेरा खयाल जो कुछ भी है, वह मत पूछो-लेक्नि यहा हर किसी था यही खयाल है कि मैं इह मुडवा दू-वह साला मजिस्ट्रेट मेहरबान हो जाएगा। तो मुडवा दू विम्टो भाई ?' किंचित विलम्ब के बाद मैंने उससे कहा-'हा, अगर तुम मुनासिब समझते हो तो मुडवा दो-कचहरी का मामला है और तुम्हारी मूर्छ सचमुच बडी भयानक है।' दूसरे दिन ममद भाई ने अपनी मूछे-अपन प्राणा से प्यारी मूछे मुडवा डाली क्योकि उसकी इज्जत खतरे में थी, लेकिन केवल दूसरा के मशविरे पर मिस्टर एफ० एच० टेत की कचहरी मे उसका मुकद्दमा पेश हुआ । ममद भाई मूछो के बिना पेश हुमा । मैं भी वहा मौजूद था । उसके खिलाफ कोई गवाह मौजूद नही था । लेकिन मजिस्ट्रेट साव ने उसको गुडा सिद्ध कर 'तडी पाड' अर्थात प्रात छोड देने का दण्ड दे दिया। उसे कैवल एक दिन मिला था जिमम उसे अपना सब कुछ समेट बटोरकर बम्बई छोड देना था। क्चहरी से निकलकर उसने मुझसे कोई बात 7 की। उसकी छोटी- चडी उगलिया बार बार ऊपर के होठ की ओर बढती थी लेकिन वहा एक बाल तक न था। शाम को जब उसे वम्बई छोडकर कही और जाना था मेरी उसकी 'मुलाकात ईरानी के होटल में हुई। उसके दम-बीस गिव्य पास पास की कुर्मियो पर बैठे चाय पी रहे थे। जब मैं उससे मिला तो उसन मुझमे कोई बात न की । मूछो के बिना वर बहुत भद्र पुष्प दिखाई दे रहा था नैकिन मैंने महसूस किया कि वह बहुत दुखी है। उस पास कुर्सी पर बैठकर मैंने उससे कहा, 'क्या बात है ममद भाई" उसने उत्तर मे एक बहुत बडी गाली भगवान जान किसको दी मौर रहा, 'साला अब ममद भाई ही नहीं रहा ।' मुझे मालूम था कि उसे प्रात छोडन वा दण्ड दिया जा चुका है । मैंने 222/टाबाटवसिंह