पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२४

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7 तब सुशिया ने मुडकर देखा । उसकी हैरत की कोई इतहा न रही, जव उसने काता को बिलकुल नगी नेसा। बिलकुल नगी ही समझो, क्याकि वह अपने अगा को सिफ एक तौलिय स छिपाए हुए थी। छिपाए हुए भी तो नही कहा जा सकता क्यादि छिपाने की जितनी चीजें होती हैं वे तो सब की सब, सुशिया को चक्ति पाखा के सामन थी। 'कहो खुशिया वस पाए मैं बस अब नहाने ही वाली थी। बैठो- वठो बाहर वाले स अपने लिए चाय के लिए तो कह पाए होत जानत तो हो वह मुना रामा यहा स भाग गया है।' सुशिया जिसकी पाखा न कभी औरत को यू अचानक नगा नही देखा था, यह घबरा गया। उसकी समझ म न पाता था कि क्या कहे। उसकी निगाह, जो एक्दम नग्नता से चार हो गई थी अपने आपको कही छिपाना चाहती थी। उमन जत्दी जल्दी सिफ इतना कहा, 'जागो जानो तुम नहा लो। फिर एवम उनकी जवान पुल गई, 'पर जब तुम नगी थी ता दरवाजा खोलने की क्या जरुरत थी? अदर से वह दिया होता मैं फिर पा जाता लकिन जामो तुम नहा लो। काता मुस्कराई, 'जब तुमने कहा-खुशिया है तो मैंने सोचा क्या हज है अपना खुशिया ही तो है प्रान दो C202 वान्ता की यह मुस्कराहट अभी तक सुशिया के दिलो दिमाग म तैर रही थी। इस वक्त भी काता का नगा जिस्म मोम के पुतले की तरह उसकी प्रासो के सामन सडा था और पिघल पिघलकर उसके अदर जा रहा था। उसका जिस्म सुदर था। पहली बार खुशिया को मालूम हुआ था कि जिस्म वेचन वाली औरतें भी ऐमा सुडौल वदन रसती है । उसको इस बात पर हैरत हुई थी, पर सवस ज्यादा ताज्जुब उस इस बात पर हुआ था कि नग घडग वह उसके सामने खडी हो गई और उसको लाज तक न पाई- क्या? इसका जवाब पाता ने यह दिया था मनबहा, सुशिया