पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/२५

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है तो मैंने सोना, क्या हज है अपना मुशिया ही तो है यान दो।' का ता और सुगिया एक ही पशे म शरीक थे। वह उसका दलाल था, इम लिहाज से वह उसीका था पर यह कोई वजह नहीं थी कि वह उसके सामन नगी हो जाती। वाई खास बात थी। काता न जो बात कही थी उममे सुगिया कोई और ही मनलव कुरेद रहा था। यह मतलव एक ही वक्त इतना साफ और धुधला था कि सुशिया विसी खास नताजे पर नही पहुच सका था। उस समय भी, वह काता के नगे जिस्म का दस रहा था, जो ढाल के ऊपर मढे हुए चमडे की तरह तना हुण था--उसकी लुढक्ती हुई निगाहा से बिलकुल बेपरवाह । कई वार अचरज की हालत म भी उसने उसके सावने मलोने बदन पर टोह लेने वाली निगाह गाडी थी पर उसका एक रोपा भी न कपकपाया था। वस, वह ऐसे सावले पत्थर की मूर्ति की तरह खडी रही, जो एहसास- रहित हो। भइ एक मद उसके सामने खडा था-मद, जिसकी निगाह कपडो म भी औरत के जिस्म तक पहुच जाती है और जो परमात्मा जाने, खयान- ही खयाल में जाने कहा कहा पहुच जाता है। लेकिन वह जरा भी न घब- राई और उसकी पासें ऐसा समझ लो कि अभी लाण्ड्री से धुलकर आई है उसको थोडी सी लाज तो आनी चाहिए थी। जरा सी सुर्वी तो उसकी आखो मे पैदा होनी चाहिए थी। मान लिया, कस्वी थी, पर कस्बिया यू नगी तो नही खडी हो जाती। दस बरस उस दलाली करते हो गए थे और इन दम वरमो मे वह पेशा कराने वाली लडक्यिो के सारे भेदो से वाकिफ हो चुका था। मिसाल के तौर पर, उसे यह मालूम था कि पायपोनी के आखिरी सिरे पर जो छोकरी एक नौजवान लडके को भाई बनाकर रहती है इसलिए 'अछूत क या' का रिकाड-काहे करता मूरख प्यार प्यार प्यार-अपने टूटे हुए बाजे पर बजाया करती है कि उसे अशोक कुमार से बुरी तरह इश्क है । कई मनचने लौण्डे, प्रमोक्कुमार से उसकी मुलाकात कराने का झासा देकर अपना उल्लू सीधा कर चुके थे। उसे यह भी मालूम या पि दादर में जो पजाबिन रहती है सिफ इसलिए कोट पतलून पहनती है 24/ टोबा टेकसिंह