पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/४२

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ईशरसिंह के कण्ठ से बड़ी मुश्किल से ये शब्द निक्ले, 'मैंने पत्ता फेंका लेकिन लेविन 'उसकी आवाज ड्रप गई। कुलवत कौर ने उसे झभोडा, 'फिर क्या हुआ ईशरसिंह ने अपनी बद होती हुई पाखें खोली और दुलवत कोर के दारीर की ओर देखा, जिसकी वोटी-बोटी फडक रही थी वह मरी हुई थी लाश थी विलकुल ठण्डा गोश्त जानी मुझे अपना हाथ दे कुलवत कौर ने अपना हाथ ईशरसिंह के हाथ पर रखा, जो बफ से भी ज्यादा ठण्डा था। उण्डा गोश्त 143