पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/४४

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गए थे, जहा उसने मुना था कि बडे लाट माहब रहते हैं, जो गमिया में शिमले चले जात हैं। इन तीन महीनो में केवल छ प्रादमी उसके पास आए थे. केवल छ, प्रथात् महीने में दो-और इन 3 ग्राहका से उसने गुदा झूठ न बुलवाए तो साढे अठारह रपये वसूल किए थे। साढे अठारह रुपय तीन महीना में। बीस रुपये मासिक तो उम कोठे का किराया ही था, जिसे मकान मालिक अग्रेजी भाषा म फ्लंट बहता था। उस पट में ऐमा पाखाना था जिसम जजीर खीचने से सारी गदगी पानी में जोर से एक्दम नीचे नर में गायब हो जाती थी और बडा शोर होना था। गुरू शुरू में ता इस शोर ने उसे बहुत डराया था। पहले दिन जब वह पासाने म गई तो उसकी कमर में बडा दद हो रहा था। उसने लटकी हुई जजीरा का सहारा ले लिया, जिमके बारे म उसका खयाल था कि उस जैमी औरता के सहारे के लिए ही लगाई गई थी, लेकिन ज्या ही उसा जजीर को पकडकर उठना चाहा ऊपर सट घट सी हुई और फिर पानी इस शोर के साथ बाहर निकला कि डर के मारे उसवे मुह से चीख निकल गई। खुदावरश दूसरे कमरे मे अपना फोटोग्राफी का सामान ठीक कर रहा था और एक साफ वोतन म हाइदोकोनीन डाल रहा था कि उसने मुल- साना की चीख सुनी । दौडकर बाहर किना और सुलताना मे पूछा 'क्या हुमा' यह चीख तुम्हारी थी?' सुलताना का दिल धड़क रहा था। उसने कहा, 'यह मुभा पाखाना है या क्या है ? बीच में यह रेलगाडियो की तरह जजीर क्या लटका ग्यो है? मेरी कमर में दर्द था, मैंने कहा, चलो इसका सहारा ले लूगी, पर इस मुई जजीर की छेइना था कि वह धमाका हुमा मि मैं तुममें क्या इसपर खुदाबख्श बहुन हसा था और उसने मुलताना को उम पायाने बी यावत सब कुछ बता दिया था कि वह नये फैशन का पालाना है, जिममे जजीर खीचने से सारी ग दगी नीचे जमीन में चली जाती है । खुदाबरश और सुलताा का प्रापस म मे सम्बध हुना, यह एक वाली मलवार 45