पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/४९

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मुह से गाढा गाढा धुया निकलकर गदले आकाश मे भारी भरकम आद- मिया की तरह उठता नजर आता। भाप के बडे-बडे बादल भी गोर मचात हुए पटरिया से उठते और पाख भपक्ने की देर मे हवा में घुल- मिल जाते । फिर कभी भी जब वह गाडी के किसी डिब्वे को, जिसे इजन ने धक्का देकर छोड दिया होता था, अकेले पटरियो पर चलना हुआ देखती तो उसे अपना खयाल आ जाता। वह सोचती कि उसे भी क्सिीन जि दगी की पटरी पर धक्का देकर छोड दिया है और वह प्राप ही आप वढी चली जा रही है न जाने कहा, किधर ? और फिर एक दिन ऐसा आएगा जब वह कही रस जाएगी। किसी ऐसे स्थान पर जो उसको देखा भाला नहीं होगा । अम्बाला छावनी में भी उसका घर स्टेशन के पास था, लेकिन वहा कभी उसन इन चीजों का इस नजर स नहीं देखा था । और अब तो कभी कभी वह यह भी सोचने लगती थी कि यह जो सामन रेल की पटरिया का जाल-मा बिछा है और जगह जगह से भाप और धुमा उठ रहा है यह एक बहुत बडा चला है जिराम गाडी स्पी अनगिनत वेश्याए वास करती है। कई बार सुलताना को य इजन सेठ मालूम होत जो कभी कभी अम्बाला मे उसके यहा प्राया करत थे। फिर कभी कभी जब वह किसी इजन को धीर धीरे गाडियो की पक्ति के पास से गुजरता दसती तो एसा लगता कि कोई आदमा चक्ल के किसी बाजार में से ऊपर कोठी की ओर देखता हुअा चला जा रहा है। सुलताना समझती थी कि इस प्रकार के विचार पाने का कारण दिमाग की सरावी है, अतएव जव ऐसे विचार बहुत अधिक पाने लगे तो उसने बालकनी मे जाना ही छोड़ दिया। खुदावरूश से उसने कई बार कहा देखो मेरे हाल पर रहम करो। यहा घर में रहा करो, मैं सारा दिन यहा बीमारा की तरह पडो रहती हू ।' लेकिन वह हर बार यह कहकर सुलताना की तसल्ली कर देता, 'जानेमन मैं बाहर कुछ कमाने की फित्र कर रहा हूँ। अल्लाह ने चाहा तो कुछ हिना म ही वेडा पार हो जाएगा। 50 / टोवा टवसिंह