पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूर पाच महीन हो गए थे, मगर अभी तक न सुलताना का वेडा पार हुआ था न दादश का । मुहरम का महीना सिर पर पा रहा था और सुनताना के पाम काले कपडे बनवाने के लिए फूटी कौडी भी न थी। मुरतार ने लेटी हमिरटन को एक नई काट की कमीज बनवाई थी जिसकी प्रास्तोलें काली जार्जेट की थी। उसके साथ मंच करने के लिए उसके पास वाली साटन की सलवार थी, जो काजल की तरह चमकती थी। अनवरी न रेशमी जार्जेट की एक बडी नपीस साडी परीदी थी। उसने सुलताना को बनाया था कि वह इस माडी के नीचे सफद वोस्की पापेटी- कोट पहनगी क्याकि यह नया फैशन है । इन साडी के साथ पहनने के लिए अनवरी काली मखमल का जूता लाई थी, जो वडा नाजुक था। सुलताना ने जब ये सारी चीजें देखी तो उमे इस एहसास से बहुत ही दुख हुमा कि मुहरम मनाने के लिए ऐसा लिवास खरीदन की उममे सामथ्य नहीं है। अनवरी और मुस्तार के पास यह लिबास देखकर जब वह घर आई तो उसका मन बडा खिन था। कुछ ऐसा लगता था कि उसके भीतर एक फोडा-सा पंदा हो गया है । पर बिलकुल खाली था। खुदावरण नियमा- नुमार याहर गया हुआ था। काफी देर तक वह दरी पर गावतक्यिा सिर के नीचे रखे चुपचाप लेटी रही। ऊचाई के कारण जब गदा अक्ड- सी गई तो वाहर बालवनी मे चली गई ताकि चितावद्धक विचारो को मन से निकाल सके। सामने पटरियो पर गाडिया क डिप खडे थे पर इजन कोई भान पा । नाम का समय था। मडक पर छिडकाव हो चुका था और ऐमे लागा का पावागमन गुरू हो गया था जो ताव माय करने पे बाद चुप- चाप अपने घरो का रास्ता पडते थे। ऐम ही एक प्रादमी ने गदन उठा पर सुलताना की ओर दवा । सुलताना मुम्परा दी। लेकिन शीघ्र ही उमकी नजरें उमपर म हट गइ यानि अव सामन को पटरिया पर पही स एप इजन निकल पाया था। सुलताना बडे ध्यान स इजन की ओर देखन सगी और एम हो यह विचार उसक मन मे पाया कि इजन ने भी काला लियाम पहन रखा है-यह विचित्र विचार मन से भटकन ने लिए उसने काली सलवार 151