पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/५५

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दीवाली पर लाकर दिया था। उसे भी कमीज के साथ रगवा लूगी । बस, एक सलवार की क्सर है सो तुम किसी न किसी तरह पैदा कर दो देखो तुम्ह मेरी जान की कसम किसी न किसी तरह जरूर ला दो। खुदाबर उठ बैठा। 'अब तुम रवाहमरवाह क्समे दे रही हो-मैं कहा से लाऊगा, मरे पास तो अफीम खाने के लिए भी एक पैमा नहीं।' 'कुछ भी करो मगर मुझे साढे चार गज की काली साटन ला दो।' दुना करो कि आज रात ही अल्लाह दो तीन आदमी भेज दे।' 'लेकिन तुम कुछ नहीं करोगे, तुम अगर चाहो तो जरूर इतने पैसे पैदा कर सकते हो । जग से पहले यह साटन बारह चौदह आने गज म मिल जाती थी। अब सवा रपये गज के हिसाब से मिलती है । साढे चार गजा पर कितन रपये ग्वच हो जाएग?' 'अब तुम कहती हो तो मैं कोई हीला करूगा।' यह कहकर खुदावरश उठा, लो अब इन बाता को मूल जाप्रो । मैं होटल से खाना ले पाऊ ।' होटल से खाना आया। दोना ने मिलकर जहर मार किया और सो गए। सुबह हुई, खुदावरश पुराने किले वाले फकीर के पास चला गया और सुलताना अकेली रह गयी। कुछ देर लेटी रही, कुछ देर सोती रही और कुछ देर इधर उधर कमरा मे टहलती रही। दोपहर का खाना खाने के बाद उसने सफेट बोस्की की कमीज निकाली और नीचे लाण्डी वाले को रगन के लिए दे पायी । कपडे धोने के साथ साथ वहा रगने का काम भी होता था। यह काम करने के बाद उसन वापस आकर फिल्मो की किताबें पढी, जिनमे उसकी देखो हुई फिल्मो की कहानिया और गीन छपे हुए थे। कितावें पढते पटते वह सो गयी। जब उठी तो चार बज चुवे थे, क्यापि धूप आगन म से मोरी के पास पहुंच चुकी थी। नहा धो- पर निबटी तो गम चादर प्रोडकर बालकनी म मा खटी हुई । लगभग एक घण्टा मुलताना बालकनी मे खडी रही। अब शाम हो गई थी। वत्तिया जलने लगी और फिर नीचे सडर पर रौनर बदन लगी और फिर एका- 56/ टोवा टप सिंह 1