पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/५६

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एक उसे शकर नजर पा गया । तागा और मोटरो से बचता हुअा जब वह मकान के नीचे पहुचा तो कल ही की तरह उसने गदन उठाई और सुलताना की ओर देखकर मुस्करा दिया । न जाने क्यो आप ही आप सुलताना का हाथ उठ गया और उसने शकर को ऊपर आने का इशारा कर दिया। जब शकर आ गया तो सुलताना बहुत परेशान हुई कि उससे क्या कहे ? उधर गकर बडा प्रसन नजर आ रहा था जैसे अपने ही घर में प्रा पहुचा हो। पहले दिन की तरह ही वह बडी बेनकल्लुफी से सिर के नीचे गावतक्यिा रखकर लेट गया । जब सुलताना ने देर तक कोई वात नही की तो वह स्वय ही बोल पडा, 'तुम मुझे सौ वार बुला सक्ती हो और सौ बार कह सक्ती हो कि चले जानो। मैं एसी बातो पर कभी नाराज नही हुआ करता।' सुनताना असमजस म पड गई । बोली, 'नहीं, बैठो, तुम्हे जाने की कौन कहता है। शकर मुस्कराया, 'तो मेरी शर्ते तुम्हे मजूर हैं ?' 'कैसी शर्ते" सुलताना ने हसकर कहा, 'क्या निकाह कर रहे हो मुझसे?' 21 'निकाह और शादी कसी । न तुम उम्र भर किसीसे निकाह करोगी न मैं । ये रस्म हम लोगो के लिए नहीं। छोडो इन बातो को, कोई काम की बात करो।' वोलो क्या बात करु 'तुम औरत हो, कोई ऐसी वान शुरू करो जिससे दो घडी दिल बहल जाए। इस दुनिया मे सिफ दुवानदारी ही दुकानदारी नहीं, कुछ और भी है।' सुलताना अब दिल ही दिल मे शकर को स्वीकार कर चुकी थी। बोली, 'साफ साफ कहो, तुम मुझसे क्या चाहते हो।' 'जो दूमरे चाहते है।' शकर उठकर बैठ गया। 'तुमम और दूसरा मे फिर फर ही क्या रहा 'तुममे और मुझमे कोई फ्क नही । उनमे और मुझम जमीन और " काली सलवार/57