धुआ वह जव स्कूल जा रहा था तो रास्त म उसन एक कमाई देखा जिसके सिर पर एक बहुत बडा टोकरा था। उराम दो ताजा जिबह किए हुए वरे थ। सालें उतरी हुई थी और उनक नगे गोश्त म से धुप्रा उठ रहा था । जगह जगह पर यह गोश्त, जिसको दसकर मसऊट के उड गालो पर गर्मी की लहरें-सी दौड जाती थी फड रहा था--जस कभी-कभी उसकी प्रास फडवा करती थी। सवा नौ बजे हागे मगर झुक भूरे वादला के कारण एसा लगता था कि अभी बहुत सवेरा है । पाला जोरा पर नहीं था, लेकिन रास्ता चलत लोगा व मुह स गम गम समावारा की टूटिया की तरह गाढा सफेद धुमा निकन रहा था। हर चीज बोझिन दिखाई देती थी, जसे बादला के बोझ तले दबी हुई हो। मौसम कुछ ऐसी अनुभवशीलता लिए हए था जो रबड के जूत पहनकर चलने से पदा होती है। इसपर भी बाजार मे लोगा का आवागमन जारी था और दुकानें खुल रही थी। आवाजें मदम थी जसे कानाफूसिया हो रही हा । लोग हल्के हल्के कदम उठा रहे थे कि अधिक ऊची आवाज न निकले। ममऊद बगल म वस्ता दबाए स्कूल जा रहा था। न जान आज वह क्या मुस्त सुस्त सा था लकिन जब उसन बिना खाल के ताजा जिबह किए हुए वरो के गोत से सफेद सफेट घुमा उठते देखा तो उस विचित्र प्रकार आनद का अनुभव हुप्रा । उस घुए न उसके ठण्डे ठण्डे गाला पर गम गम लकीरो का एक जाल मा बुन दिया। उस गर्मी ने उसे पान द प्रदान किया और वह सोचने लगा कि सदिया में ठण्ड हाया पर वेत साने के बाद यदि यह धुआ मिल जाया करे तो कितना अच्छा हो। वातावरण म उजलापन नहीं था । प्रकाश था मगर धुधला धुधला। पुहर की पतली-सी परत हर वस्तु पर चढी हुई थी, जिससे वातावरण म गदलापन पंदा हो गया था। यह गदलापन आखा को अच्छा लगता था, 69
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