पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७२

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दद हो रहा है।' यह कहकर मसऊद की बहन ने अपनी कमर पर मुक्किया मारनी गुरू भर दी। 'मह आपकी कमर को क्या हो जाता है । जव दसो दद हो रहा है और फिर अाप दवाती भी मुझीस हैं--क्या नहीं अपनी सहलिया से कहती।' मसऊद उठ खडा हुप्रा और तयार हो गया। 'चलिए, लेकिन आपस रहे देता हू वि दस मिनट स उपादा विलकुल नही दवाऊगा। 'शाबास, शाबाश ।' उसकी बहन उठ सडी हुई और सरगमो की कापी मामन ताक में रखकर उस कमरे की पोर वढी जहा मसऊद और वह दोना साते या प्रागन म पहुचकर उसने अपनी दुपती हुई यमर सीधी की और ऊपर पाया की ओर देखा । मटियाले बादल झुके हुए थ । 'मसऊद, प्राज जरूर बारिश होगी।' यह कहकर उसने मसऊद की ओर देखा जो भीतर अपनी चारपाई पर जा लेटा था । जब क्लसूम अपने पलग पर पौधे मुह लेट गई तो ममऊद ने उठकर घडी म समय दसा और कहा 'देखिए बाजी, ग्यारह में दम मिनट है, मैं पूरे ग्यारह बजे आपकी कमर दावना छोड दूगा।' बहुत अच्छा, लेकिन तुम अब खुदा के लिए ज्यादा नसरन बधारो। इधर मेर पलग पर आकर जल्दी से कमर दवा दो। वना याद रखो, बडे जोर स पान ऐंठूगी। क्लसूम ने मसऊद को डाट पिलाई। मसऊद ने अपनी बड़ी बहन की माता का पालन किया और दीवार का सहारा लेकर पाव स उसकी कमर दबानी शुरू कर दी । मसकद के वजन के नीचे क्ल- सूम की चौडी चक्ती कमर मे हल्का-सा झुकाव पैदा हो गया । जब उसने दबाना गुरु किया, ठीक उमी तरह जिस तरह मजदूर मिट्टी गूधते हैं, तो क्लसूम न मजा लेन के लिए धीर धीरे 'हाय हाय' करना शुरु कर दिया। फलसूम के कूल्हा पर गोश्त अधिक था । जब मसऊद का पाव उस भाग पर पड़ा तो उसे ऐसा महसूस हुमा मानो वह उस बकरे के गारत को दवा रहा हो, जो उमन क्साई की दुकान मे उगली मे छुपा था। इस अनुभव न कुछ क्षणो के लिए उसके मन मस्तिष्क में कुछ ऐसे विचार घुमा/73