पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उत्पन कर दिए जिनका न कोई सिर था न पर। वह उनका मतलव न समझ सका और समझता भी बस जवपि कोइ विचार पूण ही नहीं था। एक दो बार मसऊद ने यह भी महसूम किया कि उसके पाव के नीचे गोश्त के लोयडा मे हरक्त पैदा हो गई है, ठीप वमी ही हरक्त जो उसने बकरे के गम गम गोश्त म देखी थी । उमने बड़ी बदिनी से कमर दबाना शुरू की थी, लेकिन अब उसे इस काम मे पानद का अनुभव हाने लगा। उसके बोझ के नीचे क्लमूम धीरे धीरे कराह रही थी। यह भिचा भिंचा सा स्वर जो मसऊद के पैरा की हरकत का माथ दे रहा था, उस अनाम से पान द मे वृद्धि कर रहा था । घड़ी मे ग्यारह बज गए, लेकिन मसऊद अपनी बहन क्लसूम की कमर दवाता रहा । जब कमर अच्छी तरह दवाई जा चुकी ता क्लमूम सीधी लेट गई और कहने लगी, 'शावाश मसऊद, गावाग' अव लगे हाया टार्गे भी दवा दो । विलकुल इसी तरह, दावास मेरे भाई ।' मसऊद ने दीवार का सहारा लेकर क्लसूम को जाधा पर अपना पूरा वोझ डाला तो उसके पैरो के नीचे मछलिया मी तडप गई। पल सूम बडे जोरा से हस पडी और दुहरी हो गई। मसऊद गिरते गिरत बचा लेकिन उसके तलवो मे मछलियो की वह तडप जस रथायी रूप मे जम-मी गई। उसके मन में एक प्रबल इच्छा ने मिर उठाया कि वह उसी प्रकार दीवार का सहारा लेकर अपनी वह्न की जाघे दवाए । अतएव उमो कहा, 'यह आपने हसना क्या गुरु कर दिया। सीधी लट जाइए--- मैं आपकी टागें दवा दू। क्लस्म सीधी लेट गई । जाधो की मछलिया इधर उधर होन के कारण जो गुदगुदी पैदा हुई थी, उसका असर अभी तक उसके शरीर म ना भई, मेर गुदगुदी होती है। तुम जगलियो की तरह दवात हो।' मसऊद को खयाल पाया कि गायद उमने गलत ढग अपनाया था। 'नहीं अब की बार मैं आपपर पूरा बोझ नही डालूगा-अाप इत्मीनान रखिए । अव ऐमी अच्छी तरह दबाऊगा कि आपको काई तकलीफ नहीं होगी।' बाकी था 74/टोवा टवसिंह