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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/८०

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वाह नहीं थी। ब मर जाते और कृपाल कौर बच जाती तो त्रिलोचन के लिए अच्छा था । वहा दवलाली म उमया भाई निरजन भी मारा जाता तो और भी अच्छा था, क्योकि इस तरह पिलोचन के लिए मैदान माफ हो जाता। खासरर निरजन उस रास्त मे रोडा ही नहीं, बहुत बडा पत्थर था। और इसीलिए जब भी कृपाल बौर म उसके वार में याने हाती तो वह उस रिजनसिंह के बजाय अलसनिरजनसिंह कहा करता था। मुबह की हवा धीरे-धीरे वह रही थी और त्रिलोचन या पगडी रहित सिर वडी प्रिय ठण्डर महसूस कर रहा था, लकिन उसम प्राका अदो एक दूसरे स टकरा रह थ । कृपाल कौर नयी-नयी उसकी जिन्दगी म पाई थी। या तो वह हटटे टट निरजसिंह की बहन थी, लेकिन बहुत ही नरम, नाजुप और लचीली थी। वह दहात म पली थी। वहा की कई गर्मिया-सदिया दस चुकी थी, फिर भी उसम वह साती और मरदानापन नहीं था, जो दहात की पाम सिख लडक्यिाम होता है, जिह कडे म कडा परिश्रम करना पडता है। उसबै नेन ना बच्चे वच्च थे, मानो अभी अधूर हा । ग्राम दहशती मिय लडविया की अपक्षा उसका ग गोरा था, मगर पोर लटठ वी तरह, और बदन चिनना था, मसराइज्ड कपडे की तरह । और वह बहुत तजीली थी। त्रिलोचन उसी गाव का था लेकिन वह अधिर दिन वहा नहीं रहा था । प्राइमरी स निकलकर जब वह गहर के हाई स्कूल म गया सो बस, फिर रही का होकर रह गया। स्कूल स उट्टी पाई तो कालेज की पाई गुरु हो गयी । इस बीच वह कई बार-अनको वार अपने गाव गया, लेकिन उसने कृपाल कौर नाम की किमी लडकी या नाम न सुना । शायद इसलिए दि हर बार वह इस अपरा तफरी म रहता था कि मीन सगीन गहर लौट जाए । वालेज का जमाना बहृत पीछे रह गया था। अडवानी चेम्बज के टैरम प्रौर वालेज वी इमारत में गायद दस वर्ष का फासला था, पासला पिलाचन के जीवन की विचित्र घटनाग्रा से भरा हुअा था। वर्मा सिंगापुर हागवाग, फिर बम्बई, जहा वह चार वप से रह रहा था, इन और यह माजेल/81