पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/७९

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आमपास सब मुमलमान थे, वे भी बडे भयानर विस्म के मुमलमान । पजाब स धडाधड खबरें आ रही थी कि वहा सिख मुमलमानो पर बहुत जुल्म ढा रहे हैं। कोई भी हाथ-मुसलमान हाथ-बड़ी आसानी से नरम व नाजुक वृपात कौर की क्लाई पकडकर उसे मौत के की तरफ ले जा सकता था। कृपाल की मा अधी थी और वाप अपाहिज । भाई था लेकिन कुछ समय से वह देवलाली में था और उसे वहा नये नये लिए हुए ठेके की देखभाल करनी थी। त्रिलोचन को कृपाल के भाई निरजन पर बहुत गुस्सा आता था । उसने, जो रोज अखबार पढता था उपद्रवो की तीव्रता के बारे में एक सप्ताह पहले चेतावनी दे दी थी और स्पष्ट शब्दो मे कह दिया था, निरजन, ये ठेके वेके अभी रहने दो, हम एक बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। अगरचे तुम्हारा वहा रहना बहुत जरूरी है लेकिन वहा मत रहो और मेरे यहा आ जानो। इसमे कोई शक नहीं कि जगह कम है लेकिन मुसीवत के दिनो मे आदमी जैस तसे गुजारा कर लिया करता है, लेकिन वह न माना। उसका इतना बडा लेक्चर सुनकर वेवर अपनी धनी मूछो मे मुस्करा दिया, 'यार, तुम बकार फिक्र करते हो । मैंने यहा ऐसे कई फ्मिाद देते हैं। यह अमतसर या लाहौर नही बोम्वे है बोम्वे। तुम्हे यहा आए सिफ चार साल हुए हैं और मैं वारह वरस से यहा रह रहा हू बारह बरस से । जाने निरजन बम्बई को क्या समझता था। उसका खयाल था कि यह ऐसा शहर है कि अगर उपद्रव हो भी तो उनका अमर अपने आप खत्म हो जाता है, मानो उसके पास छमतर हो-या वह कहानियो का कोई ऐसा किला हो, जिसपर कोई आपत्ति नहीं पा सक्ती । लकिन त्रिलोचन प्रात कालीन वायु म साफ दख रहा था कि मुहल्ला बिल्कुल सुरक्षित नहीं। वह तो सुबह के अखबारा में यह भी पत्न को तैयार था कि कृपाल कौर और उसके मा-बाप कत्ल हो चुके हैं। उसकी कृपाल कौर के अपाहिज वाप और उसकी मा की काई पर- 80/ टोबा टेरसिंह