पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/८३

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और वह अपना निवाला छोडपर उसके पास जा वठी है और ग्रिलोचन की छाती पर मूग दल रही है । प्रिलोचन कभी-कभी भिना जाता था, क्यारि वह उस अक्ला छोड कर अपने उन पुरान दोस्ता और परिचिता के साथ चली जाती थी और कई कई दिन तब उमस मुलाकात नहीं करती थी। कभी सिर दद का वहाना कभी पेट की सरावी जिसके चार म निनोचन को अच्छी तरह मालूम था कि वह फौलाद की तरह क्डा था और कभी खराब नहीं हो सकता था। जब उससे मुलाकात होती तो वह उससे कहती तुम सिख हा, य नाजुक वातें तुम्हारी समझ मे नही पा सकती। यह सुनकर निलोचन जल भुन जाता और पूछता 'कौन सी नाजुक वातें-तुम्हार पुरान यारा की ? मोजेल दोनो हाथ अपन चौडे चकले कूल्हा पर लटकाकर अपनी ताडी टागें चौडी कर दती और कहती यह तुम मुझ उनके तान क्या देते हो । हाए व मेरे यार है और मुझे अच्छे लगते है। तुम जलत हो तो जलते रहो।' त्रिलोचन एक कुशल वकील की तरह पूछता इस तरह तुम्हारी मरी ‘कमे निभेगी?' मोजेल जोर का कहकहा लगाती तुम सचमुच सिख हो। इडियट तुमसे क्मिने कहा है कि भर साथ निभानो । अगर निभान की बात है तो जामो अपन दाम, किसी सिखनी स याह कर लो। भर साथ तो इमी तरह चलेगा। त्रिलोचन नरम पड़ जाता । वास्तव मे मोजेल उसकी बडी कमजोरी वन गई थी। वह हर हालत मे उमके सामीप्य का इच्छा था। इसम कोई म देह नहीं कि मोजेल की वजह से उसकी प्राय वरज्जती होती थी। मामूली मामूली क्रिश्चियन छोकरा के सामने, जिनकी कोई हस्ती नहीं थी उस लजित होना पड़ता था। लेकिन दिल से मजबूर होकर उसने यह सब कुछ सहढे का निश्चय कर लिया था। ग्राम तौर पर तोहीन और बेइज्जती की प्रतिक्रिया प्रतिशोध हाता 84/टोबा टक सिंह