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पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/८४

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है, लेकिन बिलोचन के मामले मे ऐसा नहीं था। उसने अपने दिल और दिमाग की बहुत-सी पाखें मीच ली थी और कानो म रूई ठस ली थी। उसको मोजेल पसद थी । पसद ही नहीं, जैसा कि वह अक्सर अपने दोस्ता से बहा करता था, गोडे-गोटे उसके प्रेम मे घस गया था। अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं था कि उसके शरीर का जितना भाग दोष रह गया था, वह भी इस प्रेम की दलदल म चला जाए और विस्मर सत्म हो। गे वप नर वह इसी तरह बेइज्जती का जीवन विताता रहा लेकिन सुदट रहा । प्राविर एक दिन, जबकि मोजेल मौज म थी, उसने अपनी भुजामा म उस समेटकर पूम 'मोजेल, क्या तुम मुझस प्रेम नहीं करती माजेल उसकी भुजामा स निकल गई और कुर्सी पर बैठकर अपन फ्राय का घेरा दसने लगी फिर उसन अपनी माटी माटी यहूदी पाखें उठाइ और धनी पल भपकाकर कहा, 'मैं सिख से प्रेम नही कर सकती। मिलोचन ने ऐमा महमूस किया कि उसकी पगड़ी के नीच किसीन दहाती चिनगारिया रख दी हा । उसके तन बदन माग लग गई, 'मोजेल, तुम हमशा मेरा मजाक उडाती हो यह मेरा मजाक नहीं, मेरे प्रेम का मजाव है।' माजेल उठी और उसन अपन भूर घट हुए बाला का एक दिनफरेव भटमा दिया, तुम शेव करा लो और अपन सिर के बाल सुले छाड दो तामै गत लगाती हूँ पिक छाकडे तुम्ह पास मारेंगे---तुम मुदर हो। प्रिलोचन ये शाम और भी चिनगारिया पड गई। उसन भाग वरवर जोर से मोजा को अपनी ओर खीचा और उसके उनावी हाता में अपन मूडा भर हाठ गाइ दिए । माजेल न पदम "फू' की पोर उमसे अपन को छुड़ा लिया। मैं नुवह ही धपन दाता पर ब्रश पर चुकी हू-~-तुम कष्ट न परो।' प्रिलोचन चिल्लाया, 'मोजेर भोजेल वैनिटी वंग से छोटा-मा आईना निकालसर अपन हार देसन लगी जिनपर लगी गाडी लिपस्टिक पर सरा पड गई थी। 'खुदा की मोजेल / 85