पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/८९

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उसको चूमन की इजाजत देनी थी। वह सारा का नारा साबुन की तरह उसके शरीर पर फिर जाता था, लेकिन इससे भागे वह उसको एक इच बढन नही दती थी। उमको चिढान के लिए इतना वह देती थी, 'तुम सिस हा, मुझे तुमसे घृणा है।' त्रिलोचन अच्छी तरह जानता था कि माजेल को उसम घृणा नहीं थी । यदि एसा होता तो वह उससे व भी मिलती । महनावित उसम तनिा भी नहीं थी। वह कभी दो वप उसके साथ न गुजारती । दो टूक फैसला कर देती । अण्डरवीयर उसको नापसद थे, इमलिए कि उनस उसको उलझन हाती थी। त्रिलोचन ने कई बार उसको इनको अनि वायता के वार म वताया था शरम हया का वास्ता दिया था, लेकिन उसन यह चीज कभी न पहनी। त्रिलोचन जब उससे शरम हया को वात करता तो वह चिढ नाती थो । 'यह हया वया क्या बकवास है ?-अगर तुम्हे उसका कुछ रायाल है तो प्राख वद कर तिया करो। तुम मुझे यह बतानो कौन सा ऐसा लियाम है जिसमे प्रादमी नगा नहीं हो सकता, या जिसम से तुम्हारी नजरें पार नहीं हो सकती, मुझसे ऐसी वक्वास मत किया करो, तुम सिख हा-मुझे मालूम है कि तुम पतलून के नीचे एक सिली-सा अण्डरवीयर पहनते हो, जो निकर से मिलता जुलता होता है । यह भी तुम्हारी दाढी और सिर के बाला की तरह तुम्हारे मजहब मे शामिल है-गरम पानी चाहिए तुम्ह, इतने बडे हो गए हो और अब तक यही समझत हो कि तुम्हारा मजहब अण्डरवीयर म छिपा वठा है। त्रिलोचन को गुरू-गुरु में ऐसी बातें सुनकर श्रोध आया था लेकिन बाद मे सोचन-विचारने पर वह कभी कभी लुढक जाता और सोचता कि मोजेल की बातें शायद गलत नहीं हैं। प्रार जब उसने अपन पेशा और दाडी का सफाया करा दिया तो उसे सचमुच ऐसा लगा कि वह वेकार इतने दिन वालो का बोझ उठाए उठाए फिरा जिसका कुछ मतलब हो नहीं था। पानो की टकी के पास पहुचकर त्रिलोचन रुक गया । मोजेल को एक मोटी गाली देकर उसन उसके बारे में सोचना बद कर दिया। कृपाल 90/टोबा टेवसिंह