पृष्ठ:टोबा टेकसिंह.djvu/९

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और मुसलमाना मे चाकू छुरिया चलते रहते है और मैंने अपन बडी से सुना है कि अक्वर बादशाह ने किसी दरवेश का दिल दुखाया था और उस दरवेश ने जलकर यह बद दुना दी थी-जा, तरे हि दुस्तान मे हमेशा फसाद ही होत रहगे। और दख लो जब से अपवर वादशाह का राज खत्म हुमा है हि दुरतान म फ्माद पर फ्माद होत रहत हैं।' यह कहकर उसने ठण्डी सास भरी और फिर हुक्के का दम लगाकर अपनी बात कहनी शुरू की, 'ये कायेसी हिदुस्तान को आजाद कराना चाहत है । मैं कहता है अगर ये लोग हजार साल भी सर पटकते रह ता कुछ न होगा। बडी मे बडी बात यह होगी कि अग्रेज चला जाएगा और कोई इटलीवाला आ जाएगा, या वह स्म वाला, जिसके बारे मे मैंने सुना है कि वहुत तगटा आदमी है। लेकिन हिदुस्तान सदा गुलाम रहेगा। हा, में यह कहना भूल ही गया कि पीर न यह बद दुआ भी दी थी कि हिदुस्तान पर हमेशा बाहर के प्रादमी राज करत रहगे।' उस्ताद भगू को अग्रेजो स वडी नफरत थी। इस नफरत का कारण वह यह बतलाया करता था कि व उसके हिदुस्ताा पर अपना मिक्का चलाते हैं और तरह तरह के जुल्म ढात है । मगर उसकी नफरत की सबसे बड़ी वजह यह थी कि छावनी के गोरे उसे बहुत सताया करत थे। वे उसके साथ ऐमा वर्ताव करते ये जसे वह एक जलील कुत्ता हो। इसके अलावा उसे उनका रग भी विलकुल पसद न था। जब भी वह क्सिी गोरे के सुख सफेद चेहरे को देखना तो उसे मतनी सी आ जानी न जान क्या। वह क्या करता था कि उनके लाल भुरिया भरे चेहरे दखकर उम वह लाश याद आ जाती है, जिसके जिस्म पर स ऊपर की भिरली गल गलकर झड रही हो। जब किमी शराबी गोरे से उसका झगडा हो जाता तो सारा दिन उसको तबियत नाखुश रहती और वह शाम को अडडे मे आकर लम्प मार्का सिंगरेपीते या हुक का लगाते हुए उस गोरे को जी भरके मुनाया करता। मोटी सी गाली दने के बाद वह ढीली पगडी समेत अपन सिर को भटका देकर कहा करता था, प्राग लन पाए थे, अब घर के मालिक 10/ टोवा टकमिह