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पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/१४

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भारतवर्ष में काकोरी ग्राम (जिला लखनऊ)सुबुद्धि, सु. जन-जनकस्थल होने के कारण अबतक प्रसिद्ध है, अतएव इल ग्राम निवासी कायस्थ कुल में जो बच्चा पैदा हुआ वह बुद्धि- मानो और चातुर्य का बोज अपने हृदय में रखता था। इस पर बुन्देलखण्ड की कविकरदृश्यमाला ने उसके मनोवेग को दुबाला कर दिया, अतएव बचपन ही से ठाकुर को कविता का चसका लगा।

लार्ड मेकाले का कथन है कि कोई मनुष्य उसी भाषा में विश हो सकता है जिसको वह बोलने पहिले लगा हो और जिसका व्याकरण उसने पीछे सीखा हो । इसी कथन के अनु- सार ठाकुर का हाल था अर्थात् ठाकुर ने अपनी मातृभाषा बुन्देलखण्डी भाषा को ही अपनी कविता में बरता । न तो केशवदास और तुलसीदास जी की तरह कितावी भाषा उन्होंने बरती, न पजनेश की तरह नई गढंत को, वरन अपने लिये एक विलक्षण ही भाषा अंगीकार की जैसी किसी दूसरे बुन्दे- लखंडो कवि को नहीं मिली । कविता में निपुण होकर ठाकुर ने जैतपुर में रहना अखतियार किया। उस समय जैतपुर में महाराज केशरीसिंह जी राजा थे। इनकी बुद्धि और चतुराई को देख महाराज केशरीसिंह इनसे बहुत स्नेह रजने लगे और एक ग्राम परगनो करैया में नानकार के तौर पर ठाकुर को देकर उन्होंने उसे अपना दरबार कवि अंगीकार किया। ठाकुर कभी कभी बिजावर में भी जाकर ठहरा करते, जहां उनके वंश के लोग पहिले से बसते थे। उस समय बिजावर में जो राजा थे उनका भी नाम केशरीसिंह था । जैतपुर नरेश ने जो मान ठाकुर का किया था उसका हाल सुनकर महाराज बिजावर ने भी एक ग्राम जिसका नाम रोरा है नानकार में