कहै तो क्या अनुचित होगा। इनके पूर्वज काकोरी में रहते थे और इनके पितामह लाला खगराय जी अकबर के समय में आगरे की फौजमें साठहजार(६००००)सवार के अफसर थे। इनके पिता का व्याह बुन्देलखण्डान्तर्गत ओरछा निवासी राव राजा (जो उस समय महाराजा ओरछा के मुसाहिब थे) की पुत्री से हुआ। कहते हैं कि इस बारात में खगराय जी बारह हजार ( १२००० ) शाही सवार लाये थे। मुसाहब जी ने भी एक महीने तक बारात का परिपूर्ण आदर सत्कार किया था। इसी से ठाकुर का वंशविभव समझ लेना चाहिये। बहुत से लोग तर्क करेंगे कि लाला जी फौज के अफसर कैसे । इसका समा- धान यह है कि उस समय के कायस्थ निरे मुंशी, मुसद्दी और बाबूजी ही न होते थे बरन् लेखनी राय होने के साथ ही साथ खगराय भी होने को दावा और दम रखते थे। अकबर के समय के पश्चात् और खगराय के मृत्युवश होने पर किसी कारणवश इनके पिता गुलाबराय जी अपनी समुशल ओरछे ही में रहने लगे। ओरछे ही में संवत् १८२३ वैक्रमीय में ठाकुर का जन्म हुआ। उस समय के लोग गणित और कविता को ही बुद्धिप्रकाशक समझते थे, इस कारण उसी पुराने ढंग से ठाकुर को गणित में लीलावती और कविता में अनेकार्थ, मान- मंजरी, कविप्रिया, रामचन्द्रिकादि पढ़ाये गए । वुद्धिविकास. नार्थ ठाकुर ने दो एक पुराणों के भाषानुवाद भी देख डाले और कुछ संस्कृत भी सीखी। यद्यपि हम यह नहीं कह सकते कि वे संस्कृत के पंडित थे क्योंकि ऐसी बात उनको कविता से प्रगट नहीं होती तथापि जितनी संस्कृत भाषा कविता सम्बन्ध में आवश्यक है उतनी वे अवश्य जानते थे। कुछ दिनों बाद इनके वंश के और लोग भी कोकोरी छोड़ कर बुन्देल- खण्ड आए और जैतपुर बिजावर में बसते गए।
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