पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१९)


कुर कहत साँची आस मोहि रामही की,

रामही से काम धन धाम मेरे राम हैं

राम मेरे वैद विसराम मेरे राम साँचो,

राम मेरी औषधि जतन मेरे राम हैं।

कहते है कि औषधि सेवन तो करते जाते थे परन्तु इस कवित्त को हर समय पढ़ते ही रहते। औषधि के प्रभाव और राम की कृपा से एक अठवारे में रोग शांत हो गया । नवें दिन वे अपने काम काज में लगे। इस चरित्र से साफ जान पड़ता है कि ठाकुर कवि राम और कृष्ण में भेद न मानते थे और ईश्वर पर पूर्ण भरोसा रखते थे।

७-जो मनुष्य ईश्वर के ईश्वरत्व पर इतना भरोसा रखेगा वह अवश्य नम्र होगा। अधिक प्रमाण अनावश्यक जान पड़ता है।

८-ठाकुर कवि चतुर थे इसका प्रमाण देनाही वृथा है क्योंकि चतुराई तो कविताई की माई है । चतुर न होगा वह कविता क्या करेगा।

९-साधारण कहनि में उच्च सिद्धान्त की बात कहना कवि का मुख्य गुण है । यह गुण ठाकुर में बहुत अधिक था। देखिए बेपरवाही करने पर भी प्रेमपात्र के हृद्गत भाव का भेद आपने किस अच्छे ढंग से खोला है।

वा निरमोहिनि रूप की रासि जो ऊपर ते उर आनति हैहै । बारहि बार बिलोकि घरी घरी सूरति तो पहिचानति लैहै ॥ ठाकुर या मन की परतीत है जो पै सनेह न मानति ह है। आवत है नित मेरे लिये इतनो तो विशेष के जानति है है।

१०-आप सौंदर्योपासक अवश्य थे परन्तु यदि सौंदर्य के साथ साथ कोई अवगुण देखते तो तत्काल उसकी निश