पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/२७

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करते। एक धनवान पड़ोसी की लड़की जो रूपवती थी और गौने के पश्चात् ससुराल से वापस आई थी दिन में कई बार घर से निकल परोस की सखी सहेलियों से मिलने को जाया करती ! आपको उसकी यह चंचलता असह्य हुई और निम्न- लिखित सवैया सुना कर उसे डांट बताई।

लहरें उठे अंग उमंगन की मद जोपन के लहराती फिरै। बड़री अँखियान चितै तिरछे चित लोगन के लहराती फिरै॥ कह ठाकुर है अति ओप खरी निरखे न थिरै थहराती फिरै । सिर श्रोढ़े उढ़ोनी कसे छतियां फरिया पहरे फहराती फिरै ॥

११-किसी रूपवती स्त्री की जिस छटा पर आपका चित्त प्रसन्न होता उस छटा का चित्र आप तत्काल अपने कविता- केमेरा से खींच पबलिक में पेश करते । निम्नलिखित दो चार फोटो आपके सामने पेश हैं । आपही न्याय कीजिये कि ठाकुर की कविता की शक्ति कैसी थी।

काजर की रेख नैन बेंदाहूं लिलार सो है,

नैनन की कोरते झकोर खूब दे गई।

करे ज्यो सिंगार सब भूषणअनेक रंग,

काम की उमंग में चोराय चित ले गई।

ठाकुर कहत प्रीति रीति ना विचारी कछु,

जोबन के मान में गुमान कछु के गई।

चट छल छाय के लटक मुसुकाय के,

चटाक चित्त चोरिकै माटाक पर दे गई। रेसम को गुन, छीन छलाकर, ऐंचि के तोरि सनेह रचाव देह दसौ अंगुरी कर पाय बरै सुरझाय के रंग मचावै ॥ बोहतासी मन मोहत सी तन छोहत सी छवि भौंह चलावै। 'चंचल नैना सैनन सो पाटवा की बहू नटवा से नचावै ॥२॥ बाहर लौंन कदै कबहूँ कढ़ि देहरी लौं बिछिया झमकावै। ,