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पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/३९

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ठाकुर- ठसक।
 

जाने जोन काज को अरंभ कर दीन्हों ताको,

तौन काज कहा बिन भये लटकत है।

कहा करौं कहां देखौं घाबड़ो है जात मन,

चिंता को प्रबाह जब आन झटकत है

ठाकुर यौँ मन समुझायो करै बार बार,

मानत है नाही या वृथा ही भटकत है।

ऐलो कहा कोऊ हीन बंधु अटकत जैसो,

दीन के भये ते दीनबंधु अटकत है ॥ २५ ॥

सवैया।

आइ अगीत पछीत दई निसि टेरत मोहिं सनेह के कूकम । जानते हैं कि न जानत हैं कोई यो न जरै नर नारि सहकन ॥ ठाकुर हौं न सकौं कहिकै अब का कहिये हरि सो यह चूकन। देखि उन्हें न दिजार का ब्रजपूरि रह्यौ भोरचकनस२६

नेत्र वर्णन

डीलदार सीलदार लाज को अहार जिन्है,

तीछन मृगा से देख देख रहियत है

मीन और खनन से अलसे अनोखे देखे,

कादलहू ते ये विशेष चहियत है

ललित लचौहे, कसकौहें चसकौहैं जान,

अकुर कहत, सुख पाइ रहियत है ।

औरन के नैन कहा नैनन के लेखे आई,

ऐसे नैन होद तक नैन कहियत है ॥ २७ ॥

  • वदनामी की चर्चा।