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पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/४२

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ठाकुर- ठसक
 

रूप अनूप दियो करतार तो मान किये न सयान कहावै । और सुनी यह रूप जवाहिर भाग बड़े बिरले कोउ पावै । ठाकुर सूम जात न कोऊ उदार सुने सबही उठि धावै । दीजिय ताहि दिखाय कृपा कर जो कोउ दूर ते देखन आवै ॥

रूप विषय
(घनाक्षरी)

ये ई हिय द्वार के कदीम दरबान दोऊ,

इनहिं छिपाय कैसे ऊपरी लयो हैरी ।

हौं तो इन दोइन के रहत भरोसे हाय,

बारी खेत खायो बड़ो उलट भयो है री।

ठाकुर कहत बूझे' आँसू भरि भरि देत,

नेक हू न सोध देत कौन को दयो है री।

मेरो मन मेरी आली मोहि यह जानी जात,

नैन बटपारन के भेद में गयो है री, ॥ ३८ ॥

मोही मैं रहत रहैं मोही सों उदास सदा,

सीखत न सीख तन सीख निरधारो है।

चौंको सो चको लौ कहूँ जक सौ जकोसौ कहूं,

पाइन थको सौभाँति भाँतिन निहारो है।

ठाकुर अचेत चित चोजवारी बातन मैं.

जानत न हरि लों कहा धौं बोल हारो है।

ऐसो चित चतुर सयानो सावधान मेरो,

ये री इन आँखिन अजान करि डारो है ।। ३६ ॥

संयोग वर्णन

राधिका स्याम लसे पलका पर का पर जाति कहीछवि हाल की। आपने हाथ से भावती लेकर प्रीतिले श्राँजुरी जोरी गोपाल की।