रूप अनूप दियो करतार तो मान किये न सयान कहावै । और सुनी यह रूप जवाहिर भाग बड़े बिरले कोउ पावै । ठाकुर सूम जात न कोऊ उदार सुने सबही उठि धावै । दीजिय ताहि दिखाय कृपा कर जो कोउ दूर ते देखन आवै ॥
ये ई हिय द्वार के कदीम दरबान दोऊ,
इनहिं छिपाय कैसे ऊपरी लयो हैरी ।
हौं तो इन दोइन के रहत भरोसे हाय,
बारी खेत खायो बड़ो उलट भयो है री।
ठाकुर कहत बूझे' आँसू भरि भरि देत,
नेक हू न सोध देत कौन को दयो है री।
मेरो मन मेरी आली मोहि यह जानी जात,
नैन बटपारन के भेद में गयो है री, ॥ ३८ ॥
मोही मैं रहत रहैं मोही सों उदास सदा,
सीखत न सीख तन सीख निरधारो है।
चौंको सो चको लौ कहूँ जक सौ जकोसौ कहूं,
पाइन थको सौभाँति भाँतिन निहारो है।
ठाकुर अचेत चित चोजवारी बातन मैं.
जानत न हरि लों कहा धौं बोल हारो है।
ऐसो चित चतुर सयानो सावधान मेरो,
ये री इन आँखिन अजान करि डारो है ।। ३६ ॥
राधिका स्याम लसे पलका पर का पर जाति कहीछवि हाल की। आपने हाथ से भावती लेकर प्रीतिले श्राँजुरी जोरी गोपाल की।