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ठाकुर- ठसक
१६
 

ठाकुर कहत प्रेम नेम को परेखो देखि,

इच्छा की परिच्छा भली भांति निरधारो तो।

मेरो मन मोहन लो लागत है भाँति भाँति,

मोहन को मन मो लो लागिहै बिचारो तो॥६३ ॥

जोतिषी विचार कहै राधिका जूसुनौ बात,

मोको गति जानि परै तेरे निज श्याम की।

डोलत ही खोर खोर हेरत तिहारी ओर,

तेरो बोल सुने गैल भूलि जात धाम की।

ठाकुर कहत काम काज ना सोहात कछु,

बाढ़ो रस प्रेम भूलो बात सबै जाम की।

जैसी रट तोहि लगी राधे श्याम सुन्दर की,

तैसी रट वाहि लगी राधे तेरे नाम की ॥ ६४ ।।


यह को है कहां को न जानिये चीन्हिये नित्तहि मो मग घेरत है।

ब्रज में यह रीति कुरीति चली, यह न्याउ न कोउ निवेरत है।

नख ते शिष लौं तन ताकि रहै एजू ऐसे कहा कोउ हेरत है।

मुरली में है नाम सुनाय सखी, मोहिं राधिका २ टेरत हैं।

वियोग वर्णन ।

अपमान सुन्दरी सुजान कान दै कै सुनौ,

मानवारे लोगन में महिमा वजन की।

वेदन पुरानन प्रमानन सुनी है बात,

सुख की सुहाती कीजै सबहीके मनकी ॥

ठाकुर कहत जात प्रवित न जानी जात,

एकही सी रीति निरधारी तन धन की।

हेर लीजें हँसि लीजै हिल लीजै मिल लीजै,

कुरस गेले कीजै चाहते के मन को ॥६६॥