ठाकुर कहत प्यारी श्याम तन हेरि हेरि,
मुरि मुसक्यात ठाढ़ी कुवरि किशोरी है।
दौरी लै गुलाल ब्रज बाल चाख्यो ओरन ते,
होरी लाल होरी लाल होरी लाल होरी है ॥६५॥
होरी को हौंम हमैं ना कछू हम जानती हैं तुम रार करैया ।
फूलौ न मोहिं अकेली निहारि कै भूलियो ना तुमगायचरैया।।
ठाकुर जो बरजोरी करौ तुम ही हूं नहीं कछु दीन परैया ।
फारिहौ काहू की आँख ललारहो नोखे गोपाल गुलाल डरैया ।
दृग {दिकै अंचल सो कहती पिचकारी हमारी सखी गहियो ।
अब बोनिहोतोरिलियैहौं सुनो फिर रोझ कुगीझ कछू कहियो ॥
कवि ठाकुर कोजे फिगद कहा यह लाज हमारी तुही लहियो !
मेगो आँखिन माँझ गुलाल गयौ अब लाल हहा रहियो रहियो ।
डाख्यो जो गुलाल रङ्ग केसर को अङ्ग अङ्ग,
आन झकझौस्यौ मीडी दौर मुख रोरी में।
चाहि चितवारी हितवारी नितवारी करी,
काहे कहौ कौन अब जैहै ब्रज खोरी मैं ॥
ठाकुर कहत ऐसे रस में निरस होत,
कहा भयो छाती जो छबीले छुई चोरी मैं।
अङ्क भरि लोनी तो कलङ्क की न सङ्क कीजै,
आज बरजोरी को न दोष होत होरी मैं ||
ठाढ़ौ रही न डगौ न भगौ अब देखन देव जू कौतुक ख्यालहि।
गावन देव बजावन देव जू आवन देव जू नन्द के लालहिं ॥
ठाकुर त्यों रँगिही रँग सो अरु मारिहौं बीर अबीर गुलालहि।
धुंधर की धुधकी मैं धमारि मैं हौं फँसिही धरि लैही गुपालहि।