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पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/५३

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ठाकुर- ठसक
२२
 

श्राम मौर झोरें मौरझौरन पै झूम अली,

बिकल बियोगन की नापन नवाई में।

बरनी न जाति बन महिमा कहां लो कहीं,

करनी बिचार भई शोकित सवाई में ।

ठाकुर कहत होती ता छिन पठाई पाती,

छाती में उमङ्ग करौं कौन चतुराई में।

धन्य बनिता हैं सुर बनिता सराहैं ते जे,

कन्त घर पाइहै बसन्त की प्रवाई में ॥ २ ॥

पत्र बन बैलिन के किसले कुसम देखु,

बन बन बाग ये छबीले छबि छावने ।

कोकिला की कूक सुनि हूंक होत कैसी देखु.

ऐसे निसि-बासर सु कैसे के गवावने ॥

ठाकुर कहत हिये बिसद बिचारु देवु.

ऐसे समै स्याम हू कौ नाहि तरसावने ।

'आम पर मौर देखु मौर पर भौंर देखु,

झौरन पै भौर देख गुंजत सुहावने ॥ १३ ॥


होरी वर्णन।


रंग सौ मांचि रही रस काग पुरींगलियांत्यौं गुलाल उलोच में

जाय सकेन इतै न उतै सो घिरे नर नारि सनेह रगींच में

टाकुर ऐसो उमाह मचो भयो कोतुक एक सखीन के बीच में।

रंग भरी रस माती गुवालि गोपालहिं लै गिरो केसर कीच में।

फाग ।

फागुन के औसर अनोखे बन बानिक है,

लोन्हें ग्वालबाल स्याम फाग आइ जारी है।

पाइ सुधि डगरी नबे ली राधिका के संग,

रङ्ग लै उमङ्ग अङ्ग अङ्ग बैस थोरी है।