पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/५६

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ठाकुर-उसक मेरे लग जैहै तो दोहाई वृषभान जू की, ऐसी लौद घालिहों कि चौवर. उपटहै ॥१०॥ अखती की तीज तजबीज के सहेली जुरी, घर के निकट ठाढ़ी भावते को घेर कै एक बेर समिट सम्हार सबही पै सन्द, बोदर चलाई मनभाई हेर हेर कै ॥ ठाकुर कहत जब सुरकी लली की ओर, लौदन लफाइ कह्यो लीजै नाम हेर के स्याम को बुलाइ पिय पाह के सुनायो मुख, स्याम स्याम स्यामा लों कहायो बीसबर कै॥१०४॥ गांड गठीलो चमेली की बोदर घालो न कोऊ अनूनरी कैहै ऊसह नाम लेवानौ तो लेहैं पै धाले ते लाल कहा रस है। ठाकुर कंज कली सी लली बलि या जड़ वोट सरीर न सैहै। बाल कहै कर जोर हहा यह बोदर लाल हमें लग जैहै ॥१०॥ ॐ अखतो बैशाख सुदो तीज (अक्षय तृतिया) । इस दिन बुंदेलखण्ड में किसी बट वृक्ष के नीचे स्त्रियां पुत्तलिका पूजन करती हैं। पुरुष भी सज बज कर पूजन देखने जाते हैं। वहां पर पूजनोपरांत ऐसा होता है कि अपने अपने सम्बन्ध और प्रेम के अनुसार स्त्रियं पुरुषों से उनकी प्रियतमा का नाम पूछती हैं । पुरुष भी स्त्रियों से उनके पतियों वा उपपतियों का नाम पूछते हैं । प्रेम वश या हास्य हेत नाम कहने में संकोच करते देख कर मुलायम मुलायम गुलाब व चमेली की छड़ियों से परस्पा आघात भी करते हैं । यही वर्णन इस कविता में है।