पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/५७

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ठाकुर-ठसक पुतरोन पुजाय किलोरी सुजान सीन समाज लिये उमही । ब्रजचन्द बिहारी बिराजो जहां अखतो करी यो सुखपाय महो। कह ठाकुर लाल के आगे लता ललिता धरि अजुलि जोरि रही मुसकाय मनोहर स्यामहरै सुख साधा पुजावन राधा कही १७६ पावस वर्णन। आग सी धंधाती तातो लपटें सिराय गई, पौल पुरवाई लागी सीतल सुहान री अनूप च.रु चाँदनी मलीन भई, तापै छाँह छाँई छूटौ माननी को मान री। ठाकुर कहत आली ग्रीषम गवन कीनो, पावस प्रवेस बेन छवि सरसान री सावन सुहावन को आवन निरखि आली, मेघ बरसन लागे हिय हुलसान री ११०७॥ सवैया। $ बीतो बसंत मिलो नहि कंन सो आनंद में तिय कौलों भरैगी जेठ घालन से जरि कै तन कामिनो काम सौ कौलो लरेगी। ठाकुर जो पै न आइहैं श्याम अराम को कौन उपाय करेगी। खाय दरार रही छतिया यह बूँद पर अरराय परैगी ॥१०॥ सननात अँध्यारी बटा छननात घटा घन की अरी धेरती मी। झननात झिलो सुर सोर महा बरही फिरें मेघन टेरती सी॥ कषि ठाकुर के पिय दूर बसें तन मैन मरोर कुरेरतो सी। यह पीर न पावति श्रावति है फिर पापिती पावस पेरती सी। घूमैं घटा छटा. छूटती हैं उलहे द्रुम बेलिन पत्र नये । सो हरी हरी भूमि में इन्द्रबधू कँटिइवे को जनु बीज बये।