पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६

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में क्या शक्ति है यह वही जान सकता है जो उसके द्वारा लाम उठा रहा है ? हमने ऐसे लोगों को देखा है जो इसी प्राचीन कविता के बल पर 'आशुकवि' बने बैठे हैं। प्राचीन कवियों के अच्छे अच्छे हजारों कवित्त और सवैये याद करवे लोग उन्हीं छंदों के द्वाराशब्दों के उलटफेर से किसी प्रकार की कवितारच सकते हैं और रचते हैं । हमें इस समय यह बताने की आवश्यकता नहीं रह गयी है कि सचमुच इसमें भारी शक्ति है, क्योंकि हमी नहीं सभी काव्य-मर्मज्ञ इस बात को स्वीकार करते हैं कि प्राचीन कविता का अध्ययन आवश्यक है

हमारे हिन्दी साहित्य में तीन व्यक्ति ठाकुर" नाम के कवि हो गये हैं दो तो असनी (फतेहपुर ) के थे और एक जैतपुर (बुन्देलखंड ) के । असनीवाले भट्ट थे और जैतपुर वाले कायस्थ। जिनकी कविता प्रायः लोगों के मुख से सुनी जाती है और जिनका लोगों में अधिक गान है वे जैतपुरवाले ठाकुर थे। असनीवाले दोनों ठाकुरों में पहले की कविता अच्छी है। इस समय नाम-साम्य से तीन कपियों की कविता की खिचड़ी होगई है, और वह सब केवल डाझुर' कवि के नामसे प्रसिद्ध है, 'भारत जीवन प्रेस, काशी' से जो 'माकुर शसका प्रकाशित हो चुका है उसमें भी तोनों को याविधाओं की खिड़ी है और पाठ भी अशुद्ध है। इन ला बालों को देखकर आवश्यकता प्रतीत हो रही थी कि ठाकुर की कविता का एक अच्छा संस्करण निकले। इतने ही में लाला भगवानदीन जी से मालुम हुआ कि उनके पास डाकुर की लगभग २०० कवित्त हैं जो शुद्ध करके रक्ले हुए हैं। हम लोगों ने उसे ही देखकर प्रकाशिव कराया है।