पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/७

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इस पुस्तक में जितने छन्द दिये गये हैं उनकी बड़ी खोज की गयी है । लाला जी ने स्वयं बुन्देलखंड में घूम घूम कर इसकी खोज की है। लालाजी बिजावर भी गये थे, जहाँ ठाकुर के वंशज अब भी मौजूद हैं। वहांसे उनकी जीवनीको प्राप्त किया तथा कविता को भी ऊंचवाया। अबतक ठाकुर (जैतपुरी) की जितनी कविता प्राप्त हुई है सब इसमें दी गयी है। अन्य ठाकुरों की कविता इसमें नहीं है । पुस्तक में आये हुए कठिन शब्दों के अर्थ भी नोट में दे दिये गये हैं। ठाकुर का जीवन चरित और वंशवृक्ष भी दिया गया है जो प्रामाणिक है। यह जीवनचरित नागरी प्रचारिणी पत्रिका में लगभग १०वर्ष हुए निकल चुका है । जब कि लाला जी ने इसका संशोधन किया है और कविताओं काअन्वेषण किया है तब इसकी अमूल्यता के बारे में कुछ अधिक कहना व्यर्थ है । अन्तमें हम यह आशा करते हैं कि साहित्य प्रेमी गण इसे अपनाकर हमारे उत्साह को उत्तरोत्तर बढ़ाते रहेंगे।

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