पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६४

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ठाकुर-ठसक ठाकुर कहत देखो याके राखिबे के हेत, नीम करू भेषज सुघोर पोजियतु है। थाही नर देही को परान छोड़ देते कैसे, आरि बारि करिके पवार दीजियतु है।३१॥ मनुष्यत्व (घनाक्षी) वेई नर निम्नयर निदानर में सराहे जात, मुखन अघात प्याला प्रेम को पिये रहें। राम रस चंदन चढ़ाय अंग अगन में, नीति को तिलक बंदी अस को दिये रहें । ठाकुर कहत मंजु कंज ते मृदुल मन, मोहनी सरूप धारे हिम्मत हिये रहैं। भेट भये समये असमये अचाहे चाहे, ओर लो निबाह आँखें यकसी किये रहैं ।। १३२॥ जो छविता कछु देखिये नैन सु वा छबि देख सराहितु है । जासो लगी मुख आस कछू तिहि के दुख दीरध दाहितु है । ठाकुर जो वे अचाही भये हम तो उनको भलैं चाहतु है। या कुल रीत बड़ेन की प्रीत जो बाहि गहे की निबाहितु है।३३ जानि परो जम पेखनो है यहि ते इहि भांति छके रहने है। बात निरन्तर अन्तर की अपने दिल की न कहूं कहने है ॥ ठाकुर दोस लगाइये कौन को पाइये भाग लिखे लहने है। काम इहै मरदानगी को सिर आन पर मुलिये बहने है।।१३४॥ १-निश्चय । २-अन्त ।