पृष्ठ:ठाकुर-ठसक.djvu/६६

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24 ठाकुर-ठसक ठाकुर कहत जो पै गांठ से न दयो जाय, देत न बने उपकार से न टरिये । आपने कहे ते काहू दूसरे को भलो होय, भलो कहिवे में कळू गाफिली न करिये ॥१३६॥ जौ लौ काहू पारखी ते भेंट होन पाई नाहि, तौ लो तेई लागत गरीब से सरीरा हैं। पारखी ते भेट गये दामहू चढ़त लाख, कीमत के आगरे औ बुद्धि के गंभीरा हैं। ठाकुर कहत नाहीं निंदो गुणवानन को, रंक से दिखात पै सहर सूरवीरा हैं। ईश की कृपा ने होत ऐले कहूँ कहूँ नर, मानुष सहर भरे धूर भरे हीरा हैं ॥ १४० ॥ विधि विडंबना। ऐसे अन्ध अधम अभागे अभिमान भरे, तिन्हैं रचि रचि दिन नाहक गवाये तें भकुआ भरजी अरु हिरसी हरामजादे, लाबर दगैल स्थार गाँखिन दिखाये तैं। ठाकुर कहत ये अदानियाँ अबूझ भोंदू, अजल के वृथाही उपजाये ते। निपट निकाम काम काहू के न आवे ऐमे, सूरत हराम राम काहे को बनाये ते ॥१४॥ अनगढ़ बातें तेरी कहाँ लो बखानौ दई, मानुष को प्रीति दीन्ही प्रीत मैं विछोह तो। कूरन कौं धन दीनो सुघरन सोच दीनो, ऐलोपैन दीनो जैसो जहाँ जौन सोहतो। ठाकुर कहत जो प्रविधि मैं विवेक होतो, भाजन