पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१५८

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अध्यात्म प्रावरण एवं विरुद्ध गुणों की लपेट में इस प्रश्न को किसी प्रकार सुलझाया गया । अंत में मान लिया गया कि सृजन अल्लाह का गुण है । वह प्रकृति के प्रथम भी कर्ता था। सृष्टि उसके शान में थी। वह सृष्टि के पूर्व स्रष्टा था। कहना न होगा कि इस प्रकार की उपपत्ति से किसी जिज्ञासा को संतोष नहीं मिल सकता, तृप्त होना तो और आगे की बात है। फलतः सृष्टि के विषय में तर्क होते रहे। सूफियों ने सृष्टि को स्वप्न माना । तत्त्वदर्शी ज्ञानियों ने देखा कि वास्तव में वस्तुओं की स्वतंत्र ससा नहीं । तसव्वुफ में 'मासूम' की प्रतिष्ठा हो गई। 'अभाव' की स्थापना से कुछ शान्ति मिली। अरबी का कहना है कि 'कुन' का अर्थ क्रिया नहीं। अल्लाह वस्तुओं या द्रव्यों के तथ्य से सदैव परिचित है। उसके संकल्प में ही सबका निवास है। उसके कुन के उच्चारण से सब का विभव हो आता है। सृष्टि को यदि हम रचना की दृष्टि से देखते हैं तो वह मिथ्या है, उसकी निजी मूल सत्ता नहीं । वह विभु की विभूति है। उसकी सत्ता सापेक्ष है। अरबी संसार को शाश्वत प्रपंच समझता है। उसके मत में 'तजल्ली का प्रवाह सतत गतिशील है उसका आवर्तन नहीं होता। वह अनेक को एक की विभूति, द्रव, विभावन, प्रभाव, प्रकार आदि के रूप में व्यक्त करता है। उसकी दृष्टि में सृष्टि स्वतंत्र नहीं, पर नित्य है। काल की उसको बाधा नहीं। वह परम धर्मों का धर्म है, जो नियति का पालन करती है। जिली का कथन है कि अल्लाह चन्द्रकांति मणि के रूप में था। जब उसको सृष्टि की कामना हुई तब उसने अपने स्वच्छ स्वत्त्व पर दृष्टिपात किया। वह संकल्पधन था। उसके कटाक्ष से वह पिघलकर पानी हो गया क्योंकि अल्लाह के कमाल को वह सह नहीं सका, तब अल्लाह ने उसे जलाल की दृष्टि से देखा । 3 (१) दी मुसलिम क्रीड, पृ० २११, २६७ । (२) स्टडीज इन इसलामिक मिस्टीसोजमा, पृ० १५१ । (३) पृ. १५४। पृ० १२१-२। " " "