पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/१८६

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साहित्य गया है। यहाँ केवल इतना स्पष्ट कर देना है कि सूफियों ने किस पद्धति का अनुसरण कर काव्य-प्रवाह को हृदयग्राही और रोचक बना दिया। लोग उनकी बातों को क्यों ध्यान से सुनने लगे और 'गैरइसलामी' होने पर भी उसकी प्रशंसा करते रहे। सूफी हृदय के पक्के पाबंद होते हैं । प्रेम के सामने 'मजहब' से उनका कुछ मतलब नहीं होता। इश्क से ही उनका नाता रहता है । भाव के व्यापार में वे मग्न रहते हैं। वादविवाद या तर्क-वितर्क की खटपट में नहीं पड़ते। यही कारण है कि पौलाना रूमी तथा प्रसार जैसे मनीषी सूफियों ने अपने मन के प्रतिपादन के लिये उस प्रणाली का अनुसरण किया जो मनोरम और रोचक थी और जिसके रोम रोम से हृदय बोल रहा था। मौलाना रूमी की मसनवी के विषय में कुछ कहने की जरूरत नहीं। उसमें कुरान का सार और तसव्वुफ का सर्वस्व है। मौलाना जब झोंक में प्राते थे और खंभे को चारों ओर चक्कर काटने लगते तब उनके हृदय से काव्य- बारा फूट पड़ती थी और लोग उसे टाँक लिया करते थे। अन्योक्ति वा रूपक के सहारे कल्पित या प्राचीन कथाओं के अाधार पर मौलाना रूम ने जिस रहस्य का उद्घाटन कथा वह आज भी तसव्वुफ में पूरा पूरा प्रतिष्ठेत है। इसलाम में जो मर्यादा कुरान की है, तसव्वुफ में वही प्रतिष्ठा मौलाना रूम की मसनवी को है। सूफी उसी के द्वारा प्रेम-पीर को जगाते और उसीके पारायण से पथभ्रष्ट होने से बच जाते हैं। अत्तार ने भी उक्त मौलाना का अनुसरण किया है। उसकी मसनवी 'मंतिकुतर' में पक्षियों की वार्ता है। जीव संसार के रूपरंग में किस प्रकार लिपटा है, भोग वेलास मे लीन है, और सद्गुरु के श्रादेश अथवा अन्तरात्मा की पुकार से विचलित हो किस प्रकार प्रियतम की ओर उन्मुख हो चल पड़ना है, पर नीच ही में लोभ वेशेष के कारण फंस जाता है और फिर उचित आदेश पा अपने लक्ष्य में लीन हो अपने को सत्य समझता एवं परमात्मा और जीवात्मा का एकीकरण कर अपनी पास्तविक सत्ता का परिचय प्राप्त कर लेता है, यही तो अत्तार की मसनवी का अभीष्ट है ? इसीको तो वह इस प्रकार दिखाना चाहता है ? समाई ने कुछ पहले अस तथ्य का संकेत किया था उसीको चित्रित कर रूमी और प्रसार ने तसव्वुफ को