पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२०३

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तसव्वुफ अथवा सूफीमत सूफियों के 'खानदान' हैं उनमें अधिकांश संपन्न और सुखी हैं; लेकिन उनकी ओर से भी तसव्वुफ के प्रचार का कोई प्रबंध या आयोजन नहीं है । दरवेशों के हृदय में भी अव रूसी साम्यवाद की तरंगें उठ रही हैं। उनके प्रेम का रंग फीका पड़ता जा रहा है। हाँ, उनमें से कुछ का ध्यान इसलाम की वर्तमान अवस्था पर भी गया है। किन्तु उन्हें किसी प्रकार का प्रबल प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। नहीं, वहाबियों के प्रचार से तसव्वुफ का महत्त्व वहाँ भी घट रहा है । अरबी भाषी देशों में मिस्र ही प्रधान है। मिस्र की प्राचीन सभ्यता का नाश तो कभी हो गया, किंतु उस की प्रतिष्ठा प्राज भी बनी है। सिकंदरिया की वात जाने दीजिए । अाज भी काहिरा मुसलिम संसार का अद्वितीय विद्यापीठ है । उमर के शासन से ही मिस्र इसलाम का अड्डा सा रहा है। नेपोलियन के आक्रमण और अंगरेजों के संघर्ष ने मिस्र को सचेत कर दिया। तुर्को के ह्रास किंवा अपने पतन को देखकर मुसलिम इसलाम की चिंता में लगे और मुसलिम साम्राज्य का फिर स्वप्न देखने लगे। किन्तु गत महासमर के उपरांत न जाने क्यों सभी मुसलिम देशों को अपनी अपनी पड़ी और कुछ काल के लिये इसलाम के आधार पर एक मुसलिम साम्राज्य स्थापित करने का संकल्प जाता रहा । भारत के अतिरिक्त सभी तन-मन-धन से राष्ट्र-सेवा में लगे । सब का ध्यान अपनी प्राचीन संस्कृति पर गया। मिस्र का प्रतीत अत्यंत उज्ज्वल था । उसकी सभ्यता अति प्राचीन थी। उसका ध्यान कुछ उस पर भी गया है । उसकी यह प्रवृत्ति प्राचीनता की ओर यदि और अधिक हुई तो इसलाम के उत्कर्ष में उससे उलझन अवश्य उत्पन्न होगी। पर अभी मिस जिस पद्धति पर आगे बढ़ रहा है वह इसलाम के अनुकूल है। मिस्र के नवयुवकों ने जो संघ स्थापित किया है वह व्यापक तथा उदार है । जिन विचारों को लेकर वे मैदान में आए हैं उनके प्रसार से इसलाम का बंधुभाव ही नहीं तसत्रुफ का सम-भाव भी बढ़ेगा। वास्तव में मिस्त्र के नवयुवक सूफियों की मधुकरी वृत्ति का सहारा ले रहे हैं और सार-संग्रह में निमग्न हैं । हाँ, प्रेम-प्रसंग में पड़ कर अपनी जातीयता को नष्ट करना नहीं चाहते। अच्छा, तो मुसलिम देशों में मिस्र ही एक ऐसा देश है जो स्वस्थ चित्त से