पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२१

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४ तसव्वुफ अथवा सूफीमत सदा से सूफी अपने मत को इसलाम के अंतर्गत सिद्ध करते भी पा रहे हैं ; परंतु विचारणीय प्रश्न यहाँ केवल यह है कि सूफियों का उक्त समूचा अर्थ वास्तव में कहाँ तक ठीक है। सूफियों ने शब्दों को तोड़-मरोड़कर इसलाम और तसव्वुफ को एक करने की जो घोर चेष्टा की उसका प्रधान कारण है कि फकोह ( धर्मशास्त्री ) सदैव फकीरों के प्रतिकूल रहे हैं। यदि हम सूफियों की इस बात को मान भी लें कि उनका मत कुरान-प्रतिपादित है तो भी सूफीमत का उद्भव कुरान से सिद्ध नहीं हो पाता। हम देख चुके हैं कि कुरान अथवा मुहम्मद साहब का मत प्राचीन परंपरा का एक विशेष रूप है। यही कारण है कि इसलाम में प्राचीन नबियों, विशेषतः मूसा, ईसा और दाऊद की पूरी प्रतिष्ठा है, और मुसलमान तोरेत, इजील और जबूर को आसमानी किताव मानते हैं। अस्तु, कुछ सूफियों का कहना है कि सूफीमत का, श्रादम में बीज-वपन, नूह में अंकुर, इब्राहीम में कली, मूसा में विकास, मसीह में परिपाक एवं मुहम्मद में मधु का फलागम हुआ। एक और प्रवाद है कि सूफियों के अष्टगुणों का आविर्भाव क्रमशः इब्राहीम, इसहाक, अयूब, जकरिया, यही, भूसा, ईसा एवं मुहम्मद साहब में हुआ। सारांश यह कि सूफीमत के प्रादि-स्रोत का पता लगाने के लिये इसलाम से परे, मुहम्मद साहब से और भी आगे बढ़कर शामी जातियों की उस भावभूमि पर विचार करना चाहिए जिसके गर्भ में सूफीमत का मूल आज भी छिपा है सूफीमत के मूल-स्रोत का पता लगाने के लिए यह परम आवश्यक है कि हम उसके सामान्य लक्षणों से भली भाँति अभिज्ञ हों। इसमें तो किसी को भी संदेह नहीं हो सकता कि जिस वासना, भावना या धारणा के आधार पर सूफीमत का प्रासाद खड़ा किया गया उसके मूल में प्रेम का निवास है। प्रेम पर सूफियों का इतना च्यापक और गहरा अधिकार है कि लोग प्रेम को सूफीमत का पर्याय समझते हैं सूफियों के पारमार्थिक प्रेम के संकेत पर पश्चिम में प्रेम का इतना गुणगान किया गया 1 1 (१) दो अवारिफुल मारिफ़, पृ० ७ । (२) तसव्वुफ इसलाम, पृ० १६ ।