पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/२४०

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परिशिष्ट २२३ की रक्षा के लिप जो मसीही कटिबद्ध थे वे सूफियों के प्रेम से सर्वथा अनभिज्ञ न थे। निष्कर्ष यह कि मुसलिम संस्कार स्पेन, सिसली और क्रूड के द्वारा मसीही मत में घर कर रहे थे और नसव्वुफ तो चारों ओर से अपना रंग ही जमा रहा था । उसकी रैंगरेलियों और प्रेम प्रमोद को देखकर र ते के भूखे मसीही तड़प उठे और सहज रति की तृप्ति के लिये मसीह या मरियम के पीछे मत हो गए। पुरुष संग्राम में मन थे, पादरी संघ के संचालन तथा मत के प्रचार में तल्लीन थे, अतः मरियम के वियोगी क्रम निकने पर मसीह के विरह ने उनकी दुलहिनों को बेतरह मनाया—किसी को स्वप्न में प्रेम-बाण लगा, किमी का गंधर्व-विवाद हो गया, किसी को प्रेम की अंगठी मिली, किसी की मसीह में मैंगनी हो गई । संक्षेप में सभी का नाम मसीह से जैसे-तरी जुट ही गया और सबको मसीह के वियोग में आनंद आने लगा। मंत टेरेसा और कैथरीन क अध्ययन से सट हो जाता है कि सूफियों का गमाव किस प्रकार मीडिया पर पड़ रहा था, और किस प्रकार सूफी मसीहियों के गुह बनने जा रहे थे। जो लोग यूरो के मध्यकालीन इतिहास से अभिज्ञ हैं व स्कूब जानते हैं कि मसीहियों की भक्ति-भावना में उस समय जो परिवर्तन या परिवर्तन हुए उनका प्रधान कारण तसत्रुफ ही था। तसन्युफ में केवल प्रेम का प्रलाध ही नहीं अपितु उममें उसके स्वरूप का निदशन भी हुअा था। उसके अध्यात्म के परिशीलन से पता चलता है कि प्रतिभाशाली सूफी किस तत्परता से आर्थ-दर्शन को इमलामी रूप दे रहे थे। मोटिनस और वेदांत के आधार पर सूफिया ने अपने अध्यात्म को खड़ा किया और कतिपय मुसलिम सनीषिया ने यूनान के अन्य द्रष्टाओं के विचारों पर टीका टिप्पणी भी की। मसीहियों के प्रकोप और मसोही मन की संकीर्णता के कारण यूरोप यूनानी विद्वानों को भूल सा गया था। जब इसलाम की उथल-पुथल से यूरोप अाक्रांत हो गया और मुसलिम पंडितों ने यूनानो मीमांसकों को पूरी व्याख्या भी कर ली तब मसीहियों का ध्यान फिर यूनानो दशन की ओर गया और अपने मत की पकी प्राण-प्रतिष्टा के लिये उसकी शरण ली। सिना, किंदी, फाराबी और रुश्द आदि मुसलिम विवेचकों के प्रयत्न से यूनानी दर्शन को जो रूप मिल गया था