पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/४६

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विकास प्रभाव से सारा देश लहलहा उठा । यूनान में उसके उपरांत जो ज्ञानधारा बढ़ी उसमें शामी मत प्रायः डूब से गए । फोलो के समान यहूदी पंडित ने मूसा और अफलातून का समन्वय कर मादन-भाव का पक्ष लिया । पौलुस और यूहन्ना के संबंध में यह म्मरण रखना चाहिए कि उन पर आर्य जाति का प्रभाव सर्वमान्य है। पौलुस ने मरण में जीवन एवं आदर्श में परम प्रकाश का प्रतिपादन किया, यूहन्ना ने मसीह को जो 'प्रेम', 'प्रकाश' और 'प्रगति' कह उनको 'शब्द' सिद्ध किया, इन सब बातों का सारा श्रेय आर्य जाति को ही है। फीलो की भाँति ही क्लेमेंट (मृ. २७७ १०) ने भी मसीह और अफलातून के मतों को एक में जोड़ दिया। यूनान के दार्शनिक विचारों में भारत का कितना योग है, इसका निश्चय अभी तक न हो सका, पर इतना तो निर्विवाद है कि प्लोटिनस (मृ. ३१७ प.) ने भारतीय दर्शन के आधार पर अफलातून के प्रेम और पंथ को पुष्ट किया। भारत के संसर्ग से यूनान में जो दार्शनिक लहर उठी, इसकंदरिया में जो जिज्ञासा जगी, उनके प्रवाह से शामी मतों में चिंतन का प्रचार हो गया। फीलो, पौलुस, यूहन्ना, क्लेमेंट तक ही उसका प्रवाह बद्ध न रहा, ओरिगन (मृ० ३१. ५०), टर्ट्सलियन, आगस्टीन (मृ० ४८७ ५० ) और डायोनीसियस ( भू० ४८२ प०) प्रभृति संत भी इसके प्रवाह में अभिषिक्त हुए । ओरगिन' ने 'श्रेष्ठगीत' की टीका की और शिक्षितों तथा अशिक्षितों के धर्म में अधिकार-भेद ठहराया। टट्टलियन ने स्पष्ट ( १ ) क्रिस्चियन मिस्टीसिम पृ० २०, ६७ । (२) रम्जे महोदय का कथन है “Every attempt to create a European Greek domination on the Asianic coasts has resulted in disaster and ruin" (A. E. in G. Civi- lization p. 301) (३) क्रिश्चियन मिसीसिज्म, पृ० १०१ । एप्पेंडिक्स, डी। (४), 27