पृष्ठ:तसव्वुफ और सूफीमत.pdf/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३६ तसव्वुफ अथवा सूफीमत पर प्रेम और संगीत का उनमें निवास न था। संगीत से नो उन्हें चिढ़ थी। प्रेम एवं संगीत के अतिरिक्त सूफियों के प्रायः सभी लक्षण मुहम्मद साहब में विराजमान थे। प्रेम का वासनात्मक भाव उनमे पर्याप्त था, अभाव उसकी अलौकिकना अथवा परिष्कार का अवश्य था । मुहम्मद साहब के इसलाम से शामी जातियों में नवीन रक्त का संचार हुअा। इसलाम के उदय के पहले ही सूफीमत के सभी अंग पुष्ट हो चले थे। उनके एकी. करण की आवश्यकता थी। मुहम्मद साहब के आंदोलन से उसको नत्कालीन लाभ तो न हो सका पर श्रागे चलकर अमरबेलि की भाँति उसने मुहम्मदी पादप को छा लिया और उसीके रस से अपना रस-संचार करता रहा। यहोवा के नाइलों में उतनी शक्ति न थी जितनी अल्लाह के कहर उपासकों में । फलतः मादन-भाव के भावकों को अधिक सावधानी और तत्परता से काम लेना पड़ा। कुछ बात ही विचित्र है कि सीमा सौंदर्य को उगा देती है। इसलाम के सीमित क्षेत्र में मादन-भाव लहलहा उठा । युवती को परिधान मिला । परदे में आ जाने के कारण सूफीमत को इसलाम में प्रतिष्ठा मिली। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुहम्मद साहब के जन्म से प्रथम ह! सूफीमत का उद्भव तथा विकास हो चुका था। 'श्रेष्ठगीत' सूफी साहित्य का अनमोल रत्न है तो सही किंतु उसमें वह आब कहाँ जो जिज्ञासा को भी शांत कर दे । डायोनीसियस ने भक्ति-भावना का प्रतिपादन एवं महामिलन का आभास तो दिया पर उसमें वह आलोक कहाँ जो द्रष्टा और दृश्य को दृष्टि में लय कर सबको आकाश बना दे ! यहूदी और मसीही उल्लास को इतना न त्मा सके कि वह सचमुच सच्चा सुवर्ण बनता । इसलाम के परितः व्यवधान से सूफीमत को जो पुटपाक मिला उसी में मादन-भाव का सञ्चा प्रेम-रसायन तैयार हुआ। मादन-भाव के इसी परिपाक में सूफीमत को दर्शन का रूप मिला । सूफियों की संचित सामग्री को लेकर इसलाम ने उसको किस प्रकार तसव्वुफ का रूप दिया, इसका निदर्शन हम अगले प्रकरण में करेंगे। यहाँ तो हमें इतना ही कह कर संतोष करना है कि मुहम्मद साहब ने भावावेश में जो कुछ कहा वह सर्वथा सूफियों के प्रतिकूल न था : उसमें उनके लिये भी कुछ गंध यो।