सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:तितली.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

बदनामी है। वह तो कहो कि हाथी ही बिगड़ा था नहीं तो इस पर परदा डालने के लिए कौन-सी बात कही जाती?

और हाथी को भी तो मैंने ही छेड़कर उत्तेजित कर दिया था। यह क्या तुम नहीं जानते?

लोग तो ऐसा भी कहते हैं।

तब फिर मैना के लिए क्या ऐसा नहीं किया जा सकता। जिन लोगों के पास रुपया है वे तो रुपया खर्च कर सकते हैं। और जिसके पास न हो तो वे क्या करें?

नहीं, यह बात मैं नहीं मानता। मेरी भाभी के पैर की धूल भी तो वह नहीं है।

तेरी भाभी भी यही बात मानती है।

तब यह बात किसने फैलायी है, जानते हो भइया, उसी पाजी महंगू ने।

तुम्हारी ही खाकर मोटा हुआ है, तुम्हारी ही बदनामी करता है! अपने अलाव पर बैठकर हुक्का हाथ में ले लेता है, तब मालूम पड़ता है कि नवान का नाती है। अभी उससे मेरी एक झपट हो गई है। भइया, मैंने सब गंवा दिया, अब तो मुझे यहां रहना नहीं है। कहो तो रात में उसको ठीक करके कलकत्ते खिसक जाऊं। किसको पता चलेगा कि किसने यह किया है।

नहीं-नहीं रामजस! उसके ऊपर तुम संदेह न करो। यह सत्य है कि उसके पास चार पैसा हो गया है। उसके पास साधन-बल और जनबल भी है। इसी से कुछ बहकी हुई बातें करने लगा है, वह मन का खोटा नहीं है! संपन्न होने से इस तरह का अभिमान आ जाते देर नहीं लगती। इस तरह की बात, जब तुम गांव छोड़कर परदेश जा रहे हो तब, न सोचनी चाहिए। न जाने किस अपराध के कारण तुमको यह दिन दिखाई पड़ा तब सचमुच तुम चलते-चलते अपने माथे कलंक का टीका न लो। मैं जानता हूं जो यह सब कर रहा है। पर मैं अभी उसका नाम न लूंगा।

बता दो भइया, मैं तो जा ही रहा हूं। उसको पाठ पढ़ाकर जाता तो मुझे खुशी होती। मेरा गांव छोड़ना सार्थक हो जाता।

ठहरो भाई! हम लोगों के संबंध में लोगों की जब ऐसी धारणा हो रही है तो सोच-समझकर कुछ कहना चाहिए। जिसकी दुष्टता से यह सब हो रहा है उसके अपराध का पूरा प्रमाण मिले बिना दंड देना ठीक नहीं। परंतु रामजस, न कहने से पेट में हूक-सी उठ रही है। तुमसे कहूं; लज्जा मेरा गला दबा रही है।

कहते-कहते मधुबन रुककर सोचने लगा। उसका श्वास विषधर के फुफकार की तरह सुनाई पड़ रहा था। फिर उसने ठहरकर कहना आरंभ कर दिया—भाई, जब मैना के सामने यह बात खुल गई तो तुमसे कहने में क्या संकोच! सुनो, भगदड़ में जब मैं मैना को लेकर भागा तो मुझे ज्ञान न था कि मैं किधर जा रहा हूं। जा पहुंचा शेरकोट और वहां देखा कि भीतर से किवाड़ बंद है, बाहर सुखदेव चौबे खड़ा होकर कह रहा है, 'राजो, किवाड़ खोलो'। मेरा खून खौल उठा। मैना को छोड़कर मैंने उसे दो-चार हाथ जमाया ही था कि मैना ने रोक लिया और मैं तो उसकी हत्या ही कर बैठता; पर यही जानकर कि जब राजो के सा चौबे का कोई संबंध था तभी तो यह बात हुई, मैं रुक गया। तुम तो जानते हो कि मैं ब्याह के बाद शेरकोट गया ही नहीं: इधर यह सब क्या हो गया, मुझे मालूम नहीं। मेरा