इस मूर्ति को देखते ही महन्तजी विचलित हो उठे। आसन से थोड़ा-सा उठकर कहा-
आइए, सब कुशल तो है न?
कुर्सी पर बैठते रामपाल सिंह इंस्पेक्टर ने कहा—सब आपकी कृपा है। धामपुर में जांच के लिए गया था। वहां से चला आ रहा हूं। सुना है कि वह चौबे जो उस दिन की मारपीट में घायल हुआ था, आपके यहां है।
हां साहब! वह बेचारा तो मर ही गया होता। अब तो उसके घाव अच्छे हो रहे हैं। मैंने उससे बहुत कहा कि शहर के अस्पताल में चला जा, पर वह कहता है कि नहीं, जो होना था, हो गया; मैं अब न अस्पताल जाऊंगा, न धामपुर, और न मुकदमा ही चलाऊंगा; यहीं ठाकुरजी की सेवा में पड़ा रहूंगा।
पर मैं तो देखता हूं कि यह मुकदमा अच्छी तरह न चलाया गया तो यहां के किसान फिर आप लोगों को अंगूठा दिखा देंगे। एक पैसा भी उनसे आप ले सकेंगे, इसमें संदेह है। सुना है कि आपका रुपया भी बहुत-सा इस देहात में लगा है।
ठाकुर साहब! मैं तो आप लोगों के भरोसे बैठा हूं। जो होगा देखा जाएगा। चौबे तो इतना डर गया है कि उससे अब कुछ भी काम लेना असंभव है। वह तो कचहरी जाना नहीं चाहता।
अच्छी बात है; मैंने मुकदमा छावनी के नौकरों का बयान लेकर चला दिया है। कई बड़ी धाराएं लगा दी हैं। उधर तहसीलदार ने शेरकोट और बनजरिया की बेदखली का भी दावा किया। अपने-आप सब ठीक हो जाएंगे। फिर आप जानें और आपका काम जाने। धामपुर में तो इस घटना से ऐसी सनसनी है कि आप लोगों का लेन-देन सब रुक जाएगा।
महन्तजी को इस छिपी हुई धमकी से पसीना आ गया। उन्होंने संभलते हुए कहाबिहरिजी का सब कुछ है, वही जानें।
ठाकुर साहब पान-इलाइची लेकर चले गए। महन्तजी थोड़ी देर तक चिंता में निमग्न बैठे रहे। उनका ध्यान तब टूटा, जब राजकुमारी के साथ माधो आकर उनके सामने खड़ा हो गया। उन्होंने पूछा-क्या है?
राजकुमारी ने घूंघट संभालते हुए कहा हम लोगों को रुपये की आवश्यकता है। बन्धन रखकर कुछ रुपया दीजिएगा? बड़ी विपत्ति में पड़ी हूं। आप न सहायता करेंगे तो सब मारे जाएंगे।
तुम कौन हो और क्या बंधन रखना चाहती हो? भाई आज-कल कौन रुपया देकर लड़ाई मोल लेगा। तब भी सुनूं।
शेरकोट को बंधक रखकर मेरे भाई मधुबन को कुछ रुपये दीजिए। तहसीलदार ने बड़ी धम-धाम से मकदमा चलाया है। आप न सहायता करेंगे तो मकदमे की पैरवी न हो सकेगी। सब-के-सब जेल चले जाएंगे।
शेरकोट! भला उसे कौन बंधक रखेगा? तुम लोगों के ऊपर तो 'बेदखली' हो गई है। बनजरिया का भी वही हाल है। मैं उस पर रुपया नहीं दे सकता। मैं इस झंझट में नहीं पडूंगा।—कहकर महन्तजी ने माधो की ओर देखकर कहा—और तुम क्या चाहते हो? रुपये दोगे कि नहीं? आज ही देने के लिए कहा था न?
महन्तजी, आप हमारे माता-पिता हैं। इस समय आप न उबारेंगे तो हमारा दस