अभी तुम्हारे ही लिए वह चौबे बिचारा पिटा गया है। उसको मैं न रखते तो वह मर जाता। क्या यह दया नहीं है? तुम भी, यहां रहो तो सब कुछ मिल सकता है। ठाकुरजी का प्रसाद खाओ, मौज में पड़ी रह सकती हो। सूखा-रूखा नहीं!
फिर कुछ रुककर महन्त ने एक निर्लज्ज संकेत किया। राजकुमारी उसे जहर के घूंट की तरह पी गई। उसने कहा—तो क्या चौबे यहीं हैं।
हां; यहीं तो है, उसकी यह दशा तुम्हीं ने की है। भला उस पर तुमको कुछ दया नहीं आई। दूसरे की दया सब लोग खोजते हैं और स्वयं करनी पड़े तो कान पर हाथ रख लेते हैं। थानेदार उसको खोजते हुए अभी आए थे। गवाही देने के लिए कहते थे।
राजकुमारी मन-ही-मन कांप उठी। उसने एक बार उस बीती हुई घटना का स्मरण करके अपने को सम्पूर्ण अपराधिनी बना लिया। क्षण-भर में उसके सामने भविष्य का भीषण चित्र खिंच गया। परंतु उसके पास कोई उपाय न था। इस समय उसको चाहिए रुपया, जिससे मधुबन के ऊपर आई हुई विपत्ति टले। मधुबन छिपा फिर रहा था, पुलिस उसको खोज रही थी। रुपया ही एक अमोघ अस्त्र था जिससे उसकी रक्षा हो सकती थी। उसका गौरव और अभिमान मानसिक भावना और वासना के एक ही झटके में, कितना जर्जर हो गया था। वही राजकुमारी! आज वह क्या हो रही है? और चौबेजी! कहां से यह दुष्ट-ग्रह के समान उसके सीधे-सादे जीवन में आ गया? अब वह भी अपना हाथ दिखावे तो कितनी आपत्ति बढ़ेगी?
सोचते-सोचते वह शिथिल हो गई। महन्त चुपचाप चतुर शिकार की तरह उसकी मुखाकृति की ओर ध्यान से देख रहा था।
इधर राजकुमारी के मन दूसरा झोंका आया! कलंक! स्त्री के लिए भयानक समस्या ही तो इस काण्ड की जड़ हूं उसने मलिन और दयनीय चित्र अपने सामने ने देखा। आज वह उबर नहीं सकती थी। वह मुंह खोलकर किसी से कुछ कहने जाती है, तो शक्तिशाली समर्थ पापी अपनी करनी पर हंसकर परदा डालता हुआ उसी के प्रवाद-मूलक कलंक का घूंघट धीरे-से उधार देता है। ओह! वह आखों से आंसु बहाती हुई बैठ गई। उसकी इच्छा हुई कि जैसे हो, जो कुछ भी करना पड़े; मधुबन को इस बार बचा लेती। शैला के पास रुपया नहीं है. और वह मधुबन की सहायता करेगी ही क्यों। मधुबन कहता था कि उसने जाते लड़ाई-झगड़ा करने के लिए मना किया था। अब वह लज्जा से अपनी सब बातें कहना भी नहीं चाहता। मेरा प्रसंग वह कैसे कह सकता था। इसीलिए शैला की सहायता से भी वंचित! अभागा मधुबन!
राजकुमारी ने गिड़गिड़ाकर कहा—सचमुच मेरा ही सब अपराध है, मैं मर क्यों न गई? पर अब तो लज्जा आपके हाथ है। दुहाई है, मैं सौगंध खाती हूं आपका सब रुपया चुका दूंगी। मेरी हड्डी-हड्डी से अपनी पाई-पाई ले लीजिएगा। मधुबन ने कहा है कि वह पहले वाला एक सौ का दस्तावेज और पांच सौ यह, सब मिलाकर सूद-समेत लिखा लीजिए।
और जमानत में क्या देती हो?—कहकर महन्त फिर मुस्कुराया।
राजकुमारी ने निराश होकर चारों ओर देखा। उस एकांत-स्थान में सन्नाटा था महन्त के नौकर-चाकर खाने-पीने में लगे थे। वहां किसी को अपना परिचित न देखकर वह सिर झुकाकर बोली—क्या शेरकोट से काम न चल जाएगा?