सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:तितली.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

पर उसी जगह आकर उतर गए। उन्होंने तितली से कुछ पूछा और तितली ने मंद मुस्कान के साथ न जाने क्या उत्तर दिया। इंद्रदेव प्रसन्न-से फिर घोड़े पर चढ़कर चले गए।

उस समय अपने को उसने घुमची की लता की आड़ में पाया। वह छिपकर देख रहा है। —हां।

फिर सुखदेव आता है। वह भी तितली से बात करके चला जाता है। स्वप्न की संध्या दिन को ढुकलाकर रात को बुला लाई। अंधेरा हो गया। तारे निकल आए। उसे फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। तितली अपने आंचल में दीप लिये किसी को पथ दिखलाने के लिए खड़ी है। उसका मुख धूमिल है। वह घबराई-सी जान पड़ती है।

दूसरा दृश्य, अंधकार में और भी मलिन, कलुषपूर्ण हृदय की भूमिका में अत्यन्त विकृति होकर प्रतिभासित हो उठा। शेरकोट—खंडहर, उसमें भीतरी यह लिपी-पुती चूने से चमकीली एक छोटी-सी कोठरी! और राजो बन ठनकर बैठी है। क्यों? किवाड़ बंद है। भीतर ही वह शीशे में अपना रूप देख रही है। बाहर किवाड़ों पर खट-खट का शब्द होता है। वह मुस्कुराकर उठ खड़ी होती है।

स्वप्न देखते हुए भी मधुबन और बलपूर्वक पलकों को दबा लेता है। आंखें जो बंद थीं। वह मानों फिर से बंद हो जाती हैं। आगे का दृश्य देखने में वह असमर्थ है।

तब वह परुष है। उसको मान के लिए मर मिटना चाहिए: परन्तु यह नीच व्यापार यूं ही चलता रहे। कुत्सित प्राणियों का कालिमापूर्ण...नहीं...अब नहीं। संसार उसको अपने एक कोने में सुख नहीं, आनन्द नहीं, किसी तरह जीवन को बिता लेने के लिए भी अवसर नहीं देना चाहता। तो जिनको मैं परम प्रिय मानता हूं, उनका अपमान चाहे, वह उन्हीं की स्वीकृति से हो रहा हो—नहीं होने दूंगा। नहीं—वह सपने का वीर हुंकार कर उठा।

पहले तितली ही-हां, उसी का गला घोटना होगा। उसे प्यार करता हूं। नहीं तो संसार में न जाने क्या कहां हो रहा है, मुझे क्या? नहीं, तितली को मेरी रक्षा के बाहर संसार में जाने से अपमान, कुत्सा और दुःख भोगना पड़ेगा। मैं चढूंगा फांसी पर चढ़ने के पहले एक बार सबको जी खोलकर गाली दूंगा। संसार को हां, इसी पाजी, नीच और कृतघ्न संसार को-जिसने मेरा मूल्य नहीं समझा और हाहाकार में व्यथित देखकर धीरे-धीरे मुस्कुराता हुआ अपनी चाल पर चला जा रहा है...यह क्या रहने के उपयुक्त है? तब...ठीक तो... अंधकार है।

वह फिर उसी बनजरिया में घुसता है।

फिर तितली का भोला-सा सुंदर मुख!

उसका साहस विचलित होता है। शरीर कांपने लगता है और आंखें खुल जाती हैं। वह पसीने से तर उठ बैठता है।

दिन ढल चुका है। वह धीरे-धीरे अपनी कंदरा से बाहर आया। गंगा की तरी में खेत सुनसान पड़े थे। फसल कट चुकी थी। दूर पर किले की भद्दी प्राचीर ऊंची होकर दिखाई पड़ी। वह धीरे-धीरे बाजार की ओर न जाकर किले की ओर चला। सूर्य डूब रहा था। अभी कोयले से भरी हुई छोटी-छोटी हाथ-गाड़ियां रिफार्मेटरी के लड़के ढकेल रहे थे। मधुबन ने आंख गड़ाकर देखा; वह, वह रामदीन तो नहीं है। है तो वही।

वह वेग से चलने लगा और रामदीन के पास जा पहुंचा। उसने कहा रामदीन!