सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:तितली.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

________________

को परिचारिका-रूप में स्वीकार किया। और, जब शैला से पूछा गया, तोउसने अपनी स्वाभाविक उदार दृष्टि इन्द्रदेव के मुंह पर जमाकर कहा यदि आप कहते हैं तो मुझे स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है। भिखमंगिन होने से यह बुरा तो न होगा। इन्द्रदेव अपने मित्रों के मुस्कुराने पर भी मन-ही-मन सिहर उठे। बालिका के विश्वास पर उन्हें भय मालूम होने लगा। तब भी उन्होंने समस्त साहस बटोरकर कहा-शैला, कोई भय नहीं, तुम यहां स्वयं सुखी रहोगी और हम लोगों की भी सहायता करोगी। मकान वाली बुढिया ने जब यह सुना, तो एक बार झल्लाई। उसने शैला के पास जाकर, उसकी ठोढ़ी पकड़कर, आंखें गड़ाकर, उसके मुंह को और फिर सारे अंग को इस तीखी चितवन से देखा, जैसे कोई सौदागर किसी जानवर को खरीदने से पहले उसे देखता हो। किंतु शैला के मुंह पर तो एक उदासीन धैर्य आसन जमाए था, जिसको कितनी ही कुटिल दृष्टि क्यों न हो, विचलित नहीं कर सकती। बुढिया ने कहा—रह जा बेटी, ये लोग भी अच्छे आदमी हैं। शैला उसी दिन से मेस में रहने लगी। भारतीयों के साथ बैठकर वह प्राय: भारत के देहातों, पहाड़ी तथा प्राकृतिक दृश्यों के संबंध में इन्द्रदेव से कतहलपर्ण प्रश्र किया करती। बैरिस्टरी का डिप्लोमा मिलने के साथ ही इन्द्रदेव को पिता के मरने का शोकसमाचार मिला। उस समय शैला की सांत्वना और स्नेहपूर्ण व्यवहार ने इन्द्रदेव के मन को बहुत-कुछ बहलाया। मकान वाली बुढिया उसे बहुत प्यार करती, इन्द्रदेव के सद्व्यवहार और चारित्र्य पर वह बहुत प्रसन्न थी। इन्द्रदेव ने जब शैला को भारत चलने के लिए व शैला भी भारत चली आई। इन्द्रदेव ने शहर के महल में न रहकर धामपुर के बंगले में ही अभी रहने का प्रबंध किया। अभी धामपुर आए इन्द्रदेव और शैला को दो सप्ताह से अधिक न हुए थे। इंग्लैंड से ही इन्द्रदेव ने शैला को हिंदी से खूब परिचित कराया। वह अच्छी हिंदी बोलने लगी थी। देहाती किसानों के घर जाकर उनके साथ घरेल बातें करने का चसका लग गया था खाट पर बैठकर वह बड़े मजे से उनसे बातें करती, साड़ी पहनने का उसने अभ्यास कर लिया था और उसे फबती भी अच्छी। शैला और इन्द्रदेव दोनों इस मनोविनोद से प्रसन्न थे। वे गंगा के किनारे-किनारे धीरेधीरे बात करते चले जा रहे थे। कृषक-बालिकाएं बरतन मांज रही थीं। मल्लाहों के लड़के अपने डोंगी पर बैठे हुए मछली फंसाने की कटिया तोल रहे थे। दो-एकबड़ी-बड़ी नावें, माल से लदी हुईं, गंगा के प्रशांत जल पर धीरे-धीरे संतरण कर रही थीं। वह प्रभात था! शैला बड़े कुतूहल से भारतीय वातावरण में नीले आकाश, उजली धूप और सहज ग्रामीण शांति का निरीक्षण कर रही थी। वह बातें भी करती जाती थी। गंगा की लहर से सुंदर कटे हुए बालू के नीचे करारों में पक्षियों के एक सुंदर छोटे-से झुंड को विचरते देखकर उसने उनका नाम पूछा! इन्द्रदेव ने कहा ये सुर्खाब हैं, इनके परों का तो तुम लोगों के यहां भी उपयोग होता समर्थन किया। इन्द