पृष्ठ:तितली.djvu/१६

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है। देखो, ये कितने कोमल हैं। यह कहकर इन्द्रदेव ने दो-तीन गिरे हुए परों को उठाकर शैला के हाथ में दे दिया। ‘फाइन'!-नहीं-नहीं, माफ करो इन्द्रदेव! अच्छा, इन्हें कहूं कोमल। सुंदर!—कहती हुई, शैला ने हंस दिया। शैला! इनके लिए मेरे देश में एक कहावत है। यहां के कवियों ने अपनी कविता में इनका बड़ा करुण वर्णन किया है। गंभीरता से इन्द्रदेव ने कहा। क्या . इन्हें चक्रवाक कहते हैं। इनके जोड़े दिन-भर तो साथ-साथ घूमते रहते हैं, किंतु संध्या जब होती है, तभी ये अलग हो जाते हैं। फिर ये रात-भर नहीं मिलने पाते। कोई रोक देता है क्या? प्रकृति; कहा जाता है कि इनके लिए यही विधाता का विधान है। ओह। बड़ी कठोरता है।—कहती हुई शैला एक क्षण के लिए अन्यमनस्क हो गई। कुछ दूर चुपचाप चलने पर इन्द्रदेव ने कहा-शैला। हम लोग नीम के पास आ गए। देखो, यही सीढ़ी है; चलो देखें, चौबे क्या कर रहा है। पालना नहीं-नहीं-पालकी तो पहुंच गई होगी इन्द्रदेव। यह भी कोई सवारी है? तुम्हारे यहां रईस लोग इसी पर चढ़ते हैं— आदमियों पर। क्यों? बिना किसी बीमारी के! यह तो अच्छा तमाशा है! —कहकर शैला ने हंस दिया। अब तो बीमारों के बदले डॉक्टर ही यहां पालकी पर चढ़ते हैं शैला! लो, पहले तुम्हीं सीढ़ी पर चढ़ो। ___दोनों सीढ़ी पर चढ़कर बातें करते हुए बनजरिया में पहुंचे। देखते हैं, तो चौबेजी अपने सामान से लैस खड़े हैं। शैला ने हंसकर पूछा-चौबेजी! आप तो पालकी पर जाएंगे? मुझे हुआ क्या है। रामदीन को आज बिना मारे मैं न छोडूंगा। सरकार! उसने बड़ा तंग किया। मुझे गोद में उठाकर पालकी पर बिठाता था। छावनी पर चलकर उस बदमाश छोकरे की खबर लूंगा। बरा क्या करता था? मेरे कहने से वह बेचारा तो तम्हारी सेवा करना चाहता था और तुम चिढ़ते थे। अच्छा, चलो तुम पालकी में बैठो।— इन्द्रदेव ने कहा। फिर वही—पालकी में बैठो! क्या मेरा ब्याह होगा? ठहरो भी, तुम्हारा घुटना तो टूट गया है न। तुम चलोगे कैसे? तेल क्या था, बिल्कुल जादू! मेम साहब ने जो दवा का बॉक्स मेरे बटुए में रख दिया था-वही, जिसमें सागूदाना की-सी गोलियां रहती हैं—मैं खोल डाला। एक शीशी गोली खा डाली। न गुड तीता न मीठा–सच मानिए मेम साहब। आपकी दवा मेरे-जैसे उजड्डों के लिए नहीं। मेरा तो विश्वास है कि उस तेल ने मुझे रातभर में चंगा कर दिया। मैं अब पालकी पर न चढूंगा। गांव-भर में मेरी दिल्लगी राम-राम!! शैला हँस रही थी। इन्द्रदेव ने कहा-चौबे! होमियोपैथी में बीमारी की दवा नहीं होती, दवा की बीमारी होती है। क्यों शैला! इन्द्रदेव! तुमने कभी इसका अनुभव नहीं किया है। नहीं तो इसकी हंसी न उड़ाते।